बारिश और हरियाणा से पानी छोड़े जाने के कारण यमुना उफान पर है और नदी के आसपास के इलाकों में रहने वाले हजारों लोग अपना आशियाना छोड़ने को मजबूर हैं। जमना ठोकर में रहने वाली पार्वती, ऋतंभरा और रामदेवी का कहना है कि यमुना का जलस्तर जैसे-जैसे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे खादर इलाके में लोगों का पलायन जारी है। उन्होंने कहा कि हम यहीं पैदा हुए और अब 60-70 साल की उम्र में यहां से पलायन कर हम कहां जाएंगे। पूर्वी दिल्ली के यमुना खादर के रेनीवेल नंबर-सात के पास 300 परिवार बाढ़ से पीड़ित हैं। बेघर होने के बाद उन्हें सरकार की ओर से टेंट तो मिला है, लेकिन उसमें सुराख होने कारण बारिश में भीगने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं है।
खाना भी समय से नहीं मिलता है, लिहाजा ये लोग भूखे रहकर भी अपने आशियाने को बचाने के लिए ऊंचे स्थान की तलाश में घूम रहे हैं। यही स्थिति यमुना किनारे बसी कमोबेश हर बस्ती की है। शकरपुर से आगे ठोकर नंबर-आठ और चिल्ला गांव से लेकर कालिंदी कुंज, मदनपुर खादर और जैतपुर का भी यही हाल है। सरकार ने विस्थापित लोगों के लिए जो टेंट लगाए हैं वे नाकाफी हैं। टेंट में लोगों को शरण तो मिल गई, लेकिन बच्चों की पढ़ाई और दोनों समय का भोजन मिलना सबसे बड़ी मुसीबत है। यमुना खतरे के निशान से करीब आधा मीटर से ज्यादा ऊपर बह रही है और कई इलाके बाढ़ की चपेट में हैं।
बाढ़ तो बस बहाना है
यमुना से विस्थापित किए जा रहे लोगों की लड़ाई लड़ने वाले अखिल भारतीय संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन कुमार और महिलाओं की प्रधान विश्वेश्वरी सिंह रावत ने बताया कि सरकार की ढुलमुल नीतियों के कारण ये लोग विस्थापन के कगार पर हैं। जिस जमीन पर वे सालों से रहते हैं उन्हें पहले डीडीए ने अदालत की आड़ बुलडोजर चलाकर उजाड़ दिया और अब बाढ़ का बहाना बनाकर प्रशासन भी इस कोशिश में है कि इन लोगों को हमेशा के लिए यहां से हटा दिया जाए। यह एक तरह से सरकार की वादाखिलाफी और प्रशासन की नाकामी है।
आपात स्थिति के लिए प्रशासन तैयार
जैतपुर की विश्वकर्मा कॉलोनी में रविवार को यमुना का पानी घुसने के बाद कॉलोनी को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू की गई। यहां बांध पर शिविर लगाए गए हैं। रविवार देर रात तक 200 शिविर लगाए गए और इनमें लोगों को पहुंचाने का काम भी शुरू कर दिया गया है। स्थानीय अधिकारी ने आश्वासन दिया है कि रात में अगर पानी का दबाव ज्यादा बढ़ा तो कालिंदी कुंज बैराज के सभी फाटक भी खोल दिए जाएंगे। रविवार रात से सोमवार सुबह तक यहां भारी संख्या में पुलिस, दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी और सिविल डिफेंस वॉलंटियर तैनात किए गए थे। डीडीएमएए, दमकल विभाग और पुलिस ने लाइफ जैकेट और नाव आदि की व्यवस्था भी कर ली है ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके। वहीं यातायात पुलिस ने रविवार को पुराने यमुना पुल को बंद कर दिया था। हालांकि इस पुल पर रेल यातायात को सोमवार को बहाल कर दिया गया। यातायात पुलिस के संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार का कहना है कि इस मार्ग से जाने वाले लोगों को हमने गीता कॉलोनी और आइटीओ के वैकल्पिक मार्ग से जाने का निर्देश दिया है। इस समय करीब एक हजार से ज्यादा परिवार और दस हजार से ज्यादा लोग सड़कों पर हैं।
अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं लोग
मजनू का टीला से लोहे के पुल तक यमुना किनारे बनी झुग्गियों में कई आधी डूब चुकी हैं, लेकिन लोग इन्हें छोड़ने को तैयार नहीं हैं। लोहे के पुल के पास करीब 100 परिवारों ने झुग्गियां बनाई हैं। उनमें से कुछ तो पुल के ठीक नीचे हैं। प्रशासन ने नदी किनारे रहने वाले लोगों के लिए अस्थायी शिविरों में रहने की व्यवस्था की है, इसके बावजूद सैकड़ों शिविर खाली पड़े हैं। लोग अपना घर छोड़कर शिविरों में नहीं जाना चाह रहे हैं। यहां रहने वाले लोगों से जब पूछा गया तो उनका कहना था कि लोगों को डर है कि शिविर में जाने के बाद उनका पुश्तैनी घर उजाड़ दिया जाएगा, लिहाजा वे अपने घरों को बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं। लोगों ने कहा कि बाढ़ का खतरा वे हर साल झेलते हैं और उनके लिए ये आम बात है, लेकिन घर बदलने में काफी खर्च व मेहनत लग जाती है और बाद में पुरानी जगह मिलेगी या नहीं, इसकी भी कोई गारंटी नहीं होती।
