सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य के शराब उद्योगों को पानी की आपूर्ति पूरी तरह से काटने और पेयजल की आपूर्ति सूखा प्रभावित क्षेत्रों की ओर ले जाने का निर्देश देने से मंगलवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति पीसी पंत और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के अवकाशकालीन पीठ ने शराब निर्माताओं को पानी की आपूर्ति पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने पर याचिकाकर्ता की खिंचाई की। जजों ने कहा कि उसने सिर्फ प्रचार पाने के लिए ऐसा किया है। याचिकाकर्ता ने राज्य के शराब उद्योग को जल आपूर्ति 100 फीसद बंद करने की मांग की थी।
पीठ ने कहा- बंबई हाई कोर्ट ने पहले ही इस संदर्भ में अंतरिम आदेश पारित किया है। आप हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ क्यों आ रहे हैं? हाई कोर्ट ने पहले ही 60 फीसद की अनुमति दे दी है। अब आप क्या चाहते हैं? ये नीतिगत निर्णय हैं। इसमें एक संतुलन होना चाहिए। याचिकाकर्ता संजय भास्कर राव काले की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि पूरा क्षेत्र गंभीर सूखे से प्रभावित है और जल आपूर्ति को दूसरी ओर ले जाने के लिए एक नीति है।
इस पर पीठ ने कहा कि ये सभी नीतिगत निर्णय हैं और अदालत के हस्तक्षेप का मतलब होगा शासन को हाथ में लेना। यहां तक कि 60 फीसद कटौती का भी कोई आधार नहीं है। इसको किसी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। ये सभी नीतिगत निर्णय हैं और अदालतें इन सभी मामलों में दखल नहीं दे सकतीं। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील को अर्जी वापस लेने को कहा और याचिका को वापस ली हुई मानते हुए खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने की छूट प्रदान कर दी।
बंबई हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में राज्य सरकार से कहा था कि वह 10 मई से शराब उद्योग को जलापूर्ति में 60 फीसद की कटौती करे। यह आदेश 27 जून तक लागू रहेगा। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि शराब उद्योग को पानी की आपूर्ति में कटौती करने की बजाए किसी तरह की आपूर्ति नहीं की जाए क्योंकि क्षेत्र को पानी की गंभीर कमी से जूझना पड़ रहा है। याचिका में कहा गया था कि लोग पानी की कमी के कारण मर रहे हैं और जल का सीमित भंडार ही उपलब्ध है। लोगों को पानी से वंचित होना पड़ रहा है क्योंकि पानी शराब उद्योग को दिया जा रहा है।