विशेष जनों की समस्याएं केवल दिव्यांग कानून बना देने से नहीं हल होने वालीं, उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने नेत्रहीन और सामान्य बच्चों को एक साथ कदम ताल कराने की अनूठी पहल की है। प्रयोग सफल रहा। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय और एनसीईआरटी दोनों ने इसका रोडमैप जारी कर दिया है। अब गेंद राज्यों के पाले में है। देखना होगा कि वे इसे कितना और कैसे लागू करते हैं। एनसीईआरटी की इस अनूठी पहल ‘बरखा’ का उद्देश्य नेत्र विहिन बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने में सक्षम बनाएगा। phentermine क्योंकि एक ही किताब को देख और स्पर्श कर समझा और महसूस किया जा सकता है। संस्थान ने विशेष बच्चों के लिए किताबों का जो संग्रह जारी किया है, उसमें ब्रेल और देवनागरी दोनों लिपियों का समावेश है। फिलहाल शोध के पहले चरण में कक्षा एक से चार तक के बच्चों के लिए 40 कहानियों की पुस्तकों को एनसीईआरटी ने जारी कर राज्यों से कहा है कि वे इसे छापें और स्कूलों में पढ़ाने की व्यवस्था करें। ये किताबें कक्षाओं के लिए फिलहाल वैकल्पिक हैं लेकिन जल्द ही इसे सामान्य पाठ्यक्रम की पुस्तकों में लागू किया जाएगा ताकि विशेष बच्चे सामान्य बच्चों के साथ एक ही कक्षा में पढ़ सकें। उन्हें ब्रेल लिपि के बाबत अलग-थलग न पढ़ना पड़े।
इस शोध को मूर्त रूप देने वाली टीम की अगुआ और विशेष आवश्यकता समूह शिक्षा परिषद की विभागाध्यक्ष प्रो. अनुपम अहूजा कहती हैं कि जब सामान्य और विशेष छात्र एक बस में सफर कर सकते हैं। एक घर और मुहल्ले में रह सकते हैं। उनका बाजार एक, स्कूल एक और अस्पताल एक हो सकता है तो फिर उनकी कक्षाएं एक क्यू नहीं हो सकती हैं? वे इसे पाटने की जरूरत बताती हैं। उन्होंने कहा कि सरकार का यहीं प्रयास तो ‘बरखा’ के रूप में सामने लाने में सफलता मिली। इसका डिजिटल स्वरूप भी एनसीईआरटी की वेबसाइट पर उपलब्ध है। जो नि:शुल्क है। जहां इंटरनेट नहीं है वहां के लिए सभी 40 किताबों का सीडी प्रारूप भी बनाया गया है। इतना ही नहीं इसे मोबाइल ऐप की तरह डाउनलोड कर देखा और सुना जा सकता है। कहानियों को पशु पक्षी, जानवर, बच्चों के खेलों पर केेंद्रित कर रचा गया है।
लेकिन एनसीइआरटी की यह पहल सवाल भी खड़ी करती है। जिसका जवाब मानव संसाधन मंत्रालय को भी देना होगा। मसलन ‘बरखा’ की सफलता के बाद जब सामान्य व विशेष छात्र कक्षाओं में एक साथ एक किताब से पढ़ने लगते हैं, तब उनकी विषयवार किताबों का क्या होगा? क्या ‘बरखा’ कहानियों से आगे निकलेगी? विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित अंग्रेजी आदि विषयों के किताबों की अक्षरों को दोनों लिपियों (ब्रेल और देवनागरी) में समावेश किया जाना संभव होगा? इतना ही नहीं, आमतौर पर अपनी किताबों की आपूर्ति समय पर न कर पाने को लेकर सुर्खियों में रहने वाली एनसीईआरटी क्या अपनी सभी कक्षाओं के सभी किताबों में लिपियों का दोहरीकरण कर पाने में सक्षम होगी! इस बाबत एनसीईआरटी के निदेशक प्रो. एच. सेनापति का कहना है कि चुनौती कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। इसमें राज्यों का सहयोग जरूरी है।
सभी राज्यों को इस बाबत आगे आना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि अभी 14 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ही एनसीईआरटी की किताबों को चलाने और छापने के लिए सहमत हैं। एनसीईआरटी अनुसंधान की संस्था है। संस्थान ने कई स्तर पर ‘बरखा’ का विशेष छात्रों और उनके परिजनों के बीच सफल परीक्षण किया है। विशेषजनों के स्कूलों में इसकी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। यह सीखने की विशिष्ट प्रणाली यूनिवर्सल डिजाइन फॉर लर्निंग (यूडीएल) से बनाया गया है। जहां तक मूल विषयों की किताबों में ‘बरखा’ सरीखे की दोहरे अक्षरों की चुनौती है तो इसे एनसीईआरटी व अन्य शोध संस्थानों के साथ विमर्श के विकल्प हैं। रही बात किताबों को छापने की तो इस चुनौती को आसानी से पाटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी खुद सारी किताबें नहीं छापती, इसे कई वेंडर छापते हैं। पहले 400 वेंडर हुआ करते थे, अभी 640 वेंडर एनसीईआरटी से जुड़े हैं। करीब पौने चार करोड़ किताबों की मांग है और सवा चार करोड़ छाप रहे हैं। उन्होंने कहा ‘कदमों से ही तो मीलों की दूरी तय होती है, हम तैयार हैं।’

