पीएम नरेंद्र मोदी ने निर्माणाधीन नए संसद भवन के ऊपरी तल पर भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ का अनावरण किया। यह स्तंभ देश की पहचान है लेकिन अब इसे लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ को बदल दिया गया है।

हालांकि इसे बनाने वाले मूर्तिकार सुनील देओरे का कहना है कि इसमें कोई बदलाव नहीं है। अशोक स्तंभ बनाने में उन्हें 9 महीने के करीब लगे। देओरे का कहना है कि सरकार से कोई सीधा कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला था। हमने किसी के कहने पर कोई बदलाव नहीं किया है। सारनाथ में मौजूद स्तंभ का ही ये कॉपी है। सुनील देवरे ने कहा कि ये अशोक स्तंभ बनाने के लिए उन्हें सरकार या बीजेपी से कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं मिला। उनका करार टाटा के साथ हुआ था। उन्हीं को सुनील द्वारा अशोक स्तंभ का मॉडल दिखाया गया था।

लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने ट्वीट किया कि मूल कृति के चेहरे पर सौम्‍यता का भाव है जबकि नई मूर्ति में आदमखोर प्रवृत्ति दिखाई देती है। तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा और जवाहर सिरकार ने पुराने अशोक स्तंभ के फोटो को ट्वीट किया, वहीं आप सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया कि मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूं कि राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को राष्ट्र विरोधी बोलना चाहिए कि नहीं बोलना चाहिए।

कांग्रेस ने कहा कि नए संसद भवन में लगे राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण के मौके पर विपक्ष को नहीं बुलाया जाना अलोकतांत्रिक है। इस पर सत्यमेव जयते न लिखा होना भी बड़ी गलती है। इसे अभी भी ठीक किया जा सकता है।

असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा है कि संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका का की शक्तियों को अलग करता है। सरकार के प्रमुख के रूप में पीएम को नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा के अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। जो सरकार के अधीन नहीं हैं। पीएमओ द्वारा संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है।

भाजपा सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि मूर्ति के डिजाइन से लेकर फंड और कंस्ट्रक्शन सुपरविजन तक का सारा काम शहरी विकास विभाग द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि निर्माण कार्य पूरा होने के बाद भवन को संसद प्रशासन को सौंप दिया जाएगा। बलूनी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्षी दल निराधार आरोपों लगा रहे हैं। उनके मकसद का पता चल रहा है।

अशोक ने क्यों बनवाया था स्तंभ

कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर सम्राट अशोक का मोहभंग कर दिया। इस युद्ध के बाद हुए हृदय परिवर्तन के कारण अशोक ने जीवन में कभी युद्ध न करने का संकल्प ले लिया। फिर वो धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म की शरण में चले गए। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अशोक ने बाकी का जीवन शिक्षा और धर्म प्रचार में लगा दिया। सम्राट अशोक ने धम्म की नीति अपनाने के बाद कई स्तंभों का निर्माण करवाया था।

भारत के राजकीय प्रतिक अशोक स्तंभ को भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1950 को अपनाया था। मूल स्तंभ सारनाथ स्थित संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। अशोक के सिंह स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं लेकिन सामने से केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं। मूल स्तंभ चुनार के बलुआ पत्थर को काटकर बना है। सिंहों के नीचे एक हाथी, एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं। इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं।