दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के इस्तीफे से ज्यादा अब इस्तीफे के कारणों पर बहस हो रही है। इस इस्तीफे को लेकर कांग्रेस केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है कि उसे कमजोर करने के लिए भाजपा ने आम आदमी पार्टी (आप) से हाथ मिला लिया है। इसी के तहत दिल्ली सरकार के डेढ़ साल के कामकाज की जांच करने वाली वीके शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट को 19 दिसंबर को सार्वजनिक करने से रोका गया। अगर ऐसा न होता तो पहले हफ्ते भर की छुट्टी की अर्जी और फिर अचानक इस्तीफा देने के बाद नजीब जंग प्रधानमंत्री से मिलने नहीं जाते। प्रधानमंत्री से मिलने के बाद खुद जंग और आप व भाजपा के नेताओं ने दावा किया कि उन्होंने अध्यापन के लिए उपराज्यपाल का पद छोड़ा है। उनकी जगह पर नए उपराज्यपाल के नाम की घोषणा कभी भी हो सकती है। अभी जो नाम चर्चा में हैं, उनमें पूर्व गृह सचिव अनिल बैजल, पूर्व डीडीए उपाध्यक्ष अल्फांसो, पूर्व पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी जैसे नाम शामिल हैं।
नए उपराज्यपाल की नियुक्ति और उनके फैसलों से ही जंग के इस्तीफे के कारण का खुलासा हो पाएगा और यह पता चल पाएगा कि कहीं नजीब जंग को भी तो उसी तरह पद से हटने पर मजबूर नहीं किया गया जैसे कुछ महीने पहले रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन ने उनके खिलाफ माहौल बनाने पर सेवा विस्तार नहीं लेने की बात कही थी। पेशे से आइएएस अधिकारी रहे नजीब जंग जुलाई 2013 में उपराज्यपाल बनने से पहले जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति थे। वैसे उनके पास अध्ययन और अध्यापन का भी लंबा अनुभव है। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने तेजेंद्र खन्ना के स्थान पर उन्हें उपराज्यपाल बनाया था। जंग की सबको साधने की क्षमता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साढ़े तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने कांग्रेस, भाजपा और आप के साथ काम किया। जंग के कड़े रुख के कारण दिल्ली की आप सरकार से हमेशा ही उनकी ठनी रही। आप की 49 दिनों की पहली सरकार ने औपचारिकता पूरी किए बिना 14 फरवरी 2014 को जनलोकपाल विधानसभा में पेश करने की कोशिश की, जिसे नजीब जंग ने रुकवा दिया था। इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ्पने पद से इस्तीफा दे दिया था
2015 में दोबारा चुनाव होने पर प्रचंड बहुमत के साथ आप फिर दिल्ली की सत्ता में आ गई और अपने चुनावी वादे पूरा करने के लिए कानून को दरकिनार करके फैसले लेने शुरू कर दिए। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने जिद करके केके शर्मा को मुख्य सचिव बनाया। मई में उनके छुट्टी पर जाने पर दिल्ली सरकार के सुझाव को दरकिनार कर जंग ने वरिष्ठ अधिकारी शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव बना दिया। यह विवाद ऐसा बढ़ा कि सेवा विभाग के सचिव अनिंदो मजूमदार के कमरे में सरकार ने ताला लगा दिया। केजरीवाल के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार की अगुवाई में अधिकारियों का एक धड़ा केजरीवाल के साथ था, लेकिन वह अल्पमत में था। राजनिवास और दिल्ली सरकार के विवाद ने अधिकारियों को बांट दिया। पहली बार 31 दिसंबर 2015 को आइएएस और दानिक्स अधिकारी एक साथ हड़ताल पर गए। उपराज्यपाल उन सभी फैसलों को पलटने लगे जो सरकार करती थी। एसीबी पर नियंत्रण की लड़ाई भी महीनों चली। आखिरकार नियंत्रण उपराज्यपाल का ही हुआ। दिल्ली विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति को आज तक उपराज्यपाल की मान्यता नहीं मिली। इसी तरह दिल्ली महिला आयोग और दिल्ली वक्फ बोर्ड में नियुक्तियों पर अभी भी विवाद जारी है और मामला सीबीआइ के हवाले है।
दिल्ली के अधिकारों की लड़ाई भी अदालत में पहुंची और हाई कोर्ट ने 4 अगस्त को उपराज्यपाल के पक्ष में फैसला दिया। फैसले में कहा गया कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, इस नाते अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर तबादले तक का अधिकार उपराज्यपाल के पास है। हाई कोर्ट के इस फैसले को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के शुरुआती रुख से लगता है कि हाई कोर्ट के फैसले में कुछ बदलाव हो सकता है। केजरीवाल सरकार को इससे पहले एक बड़ा झटका राजेंद्र कुमार की सीबीआइ गिरफ्तारी से लग चुका था। हाई कोर्ट के फैसले के बाद उपराज्यपाल ने आप सरकार के पिछले डेढ़ साल के फैसलों की जांच पूर्व सीएजी वीके शुंगलू की अगुवाई में बनी तीन सदस्यों की कमेटी को सौंप दी। कमेटी ने करीब 400 फाइलों की जांच कर अपनी रिपोर्ट उपराज्यपाल को 27 नवंबर को सौंप दी। उस कमेटी को दिल्ली सरकार ने पहले तो अवैध करार दिया। उपराज्यपाल ने न केवल केजरीवाल सरकार के एतराजों को दरकिनार किया बल्कि उसकी सिफारिशों के हिसाब से जांच करवाने और कार्रवाई करने के लिए सार्वजनिक बयान जारी किया। माना जा रहा था कि उपराज्यपाल उस रिपोर्ट तो तुरंत सार्वजनिक कर देंगे।
ऐसा न होने पर ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने आरोप लगाया था कि 19 दिसंबर को जंग शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने वाले थे, इसलिए ऐसा लगता है कि उपराज्यपाल को रिपोर्ट सार्वजनिक करने से रोका गया है। माकन का आरोप है कि भाजपा और आप में समझौता हुआ है क्योंकि अगर शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाती तो आप की दिल्ली सरकार का भ्रष्टाचार उजागर हो जाता और गोवा व पंजाब में प्रचार में जुटी आप को झटका लगता। उन्होंने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सवाल किया कि अभी तक शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट पर सीबीआइ जांच के आदेश क्यों नही दिए?
सच्चाई कभी न कभी तो सामने आएगी ही, लेकिन जिस तरह से जंग ने अचानक इस्तीफा दिया उससे कई सवाल खड़े हुए हैं। उम्मीद है कि नए उपराज्यपाल के नाम की घोषणा और शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट समेत अन्य मामलों पर उनके फैसलों से कई सवालों के जवाब सामने आएंगे।
