अशोक विहार के सावन पार्क हादसे के बाद जितनी जल्दबाजी में निगम ने यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की है कि उसने इस इमारत को खतरनाक घोषित नहीं किया था उतनी जल्दी से अगर निगम खतरनाक इमारत पर कार्रवाई शुरू करे तो ऐसे हादसे बहुत कम ही सामने आएंगे। दो साल से 12 साल के चार मासूम बच्चों की जान लेने वाली इस इमारत से पहले भी दिल्ली की कई खतरनाक इमारतों ने लोगों की जान ली है। बुधवार के हादसे में तो पुलिस और निगम खुद आमने-सामने हैं। पुलिस कह रही है कि इस इमारत को खतरनाक घोषित किया जा चुका था जबकि निगम इससे इनकार कर रहा है।

ललिता पार्क हादसे में तो मजिस्ट्रेटी जांच और न्यायिक जांच के बाद निगम के कनिष्ठ अभियंता से लेकर कई आला अधिकारियों तक पर गाज गिर चुकी थी। ताजा मामले में कांग्रेस और आप ने निगम आयुक्त से इस्तीफे तक की मांग की है। इन घटनाओं से मालूम होता है कि निगम देर से जागता है। दिल्ली में ललिता पार्क, लक्ष्मीनगर का हादसा सालों तक भुलाया नहीं जा सकता। जहां एक भूमाफिया ने अवैध बहुमंजिला इमारत खड़ी कर एक ही रात में 15 नवंबर 2010 को 67 लोगों की जान ले ली थी और सौ से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। दिल्ली के बीच शहर में स्थित 15 मंजिली इमारत खड़ी कर उसमें दो सौ लोगों को किराए पर देने वाले मालिक के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था।

15 साल पुरानी इस जर्जर इमारत ने दिल्ली पुलिस और सिविक एजंसियों की पोल खोल दी थी। बीते साल 17 जनवरी को चांदनी महल में एक मकान गिरा और उसमें रह रहे बुजुर्ग दंपति की मौत हो गई जबकि नौ अक्तूबर 2013 को सदर बाजार में मकान गिरने से पिता-पुत्र की मौत हो गई थी। 12 दिसंबर 2012 को न्यू अशोक नगर इलाके में भी इमारत ढहने से पांच लोग मर गए थे। आठ सितंबर 2011 को चांदनी महल इलाके में इमारत ढहने से 22 लोग घायल हुए थे। 14 जुलाई 2010 को ब्रह्मपुरी इलाके में इमारत गिरने से सात लोगों की जान गई थी और छह लोग घायल हुए थे आठ अगस्त 2008 को खान मार्केट में इमारत गिरने से चार लोगों की मौत हो गई थी।