राजधानी दिल्ली के अस्पतालों की सेहत भी कोई बहुत ठीक नहीं है। यहां के अस्पतालों में 2014 और 2015 में क्रमश: 74,592 और 78,067 लोगों की मौत हो गई। दिल्ली में तपेदिक से सात हजार से अधिक लोगों ने दम तोड़ा। प्रजा फाउंडेशन की ओर से जुटाए गए सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दो साल में यहां कुल 5,89,683 लोगों को डायरिया हुआ। इससे होने वाली कुल मौतों में 41 फीसद मरीज चार साल से कम उम्र के बच्चे थे। इस बीमारी से 2014 में 146 और 2015 में 157 मौतें हुई थीं। उधर, डेंगू से ही 2015 में करीब 486 मरीजों ने दम तोड़ा1356 मौतें मधुमेह और 3890 मौतें उच्च रक्तचाप से अस्पतालों में हुईं। एम्स के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ वीके पाल का कहना है कि अव्वल तो पीने के गंदे पानी से होने वाली यह बीमारी होनी ही नहीं चाहिए और अगर हो गई तो इसे ओआरएस घोल जैसे इलाज से ठीक किया जा सकता है।
संसाधनों की उपलब्धता व जरूरत के बीच की गहरी खाई का अंदाजा आरटीआइ से मिली एक जानकारी से ही लगाया जा सकता है। इसके मुताबिक दिल्ली के नगर निगम अस्पतालों व डिसपेंसरीज में डॉक्टरों की संख्या में 40 फीसद की कमी है। पैरामेडिकल स्टाफ की 45 फीसद, नर्सों की 22 फीसद, प्रशासनिक पदों पर 38 फीसद और सफाई कर्मियों की 29 फीसद कमी है। इसी तरह दिल्ली सरकार के अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या अभी भी 25 फीसद ,पैरामेडिकल स्टाफ की 31 फीसद, नर्सों की 19 फीसद प्रशासकों की संख्या 41 फीसद व मजदूरों की 37 फीसद कमी है। आरटीआइ के आंकड़े यह भी बताते हैं कि पहले से ही कम स्वास्थ्य बजट का 25 से 30 फीसद हिस्से का इस्तेमाल ही नहीं हो पाता। दिल्ली में दवाओं व जांच सुविधाओं की भारी कमी है। इसके लिए हर अस्पताल में प्रतीक्षा सूची है। यह दो महीने से लेकर दो-तीन साल तक है। दिल्ली सरकार के सुपरस्पेशियिलटी अस्पताल जीबी पंत में खराब पड़ी एमआरआइ मशीन की दो साल मरम्मत नहीं हो सकी। बाद मे सरकार ने यह काम निजी जांच प्रयोगशालों को सौंप दिया।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के न्यूक्लियर मेडिसिन जैसे अहम विभाग का हाल देखें। यहां कैंसर का पता लगाने व इलाज की रणनीति बनाने के लिए अहम उपकरण पॉजिट्रान एमीशन टोमोग्रॉफी (पेट) एमआरआइ मशीन की खरीद के लिए 12 साल से कोशिश चल रही है। कई दौर की बैठकों के बाद मंजूरी मिली। पांच साल से इसके लिए एम्स की वित्त समिति ने पैसा भी मंजूर कर रखा है। फिर भी अभी तक मशीन खरीदी नहीं जा सकी। सफदरजंग अस्पताल में कैंसर मरीजों का इलाज करने वाला रेडियोथेरेपी विभाग करीब दो साल से बंद पड़ा है। इसकी मशीनों व उपकरणों के रखरखाव में भी अनियमितता का मामला सामने आने व जरूरी संसाधन की कमी के कारण परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने इसे बंद कर दिया था। मामला संसद में भी उठा था।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के पंजीयक डॉ गिरीश त्यागी ने बताया कि इलाज में कोताही संबंधी कुल शिकायतों में 15 से 20 फीसद शिकायतें संसाधनगत कमी से जुड़ी होती हैं। इसके पहले सन 2012 दिल्ली में भी आॅक्सीजन की आपूर्ति मे आई दिक्कत के कारण पांच मरीजों की मौत हो गई थी।

