लाजपतनगर के लाल अस्पताल में 24 सितंबर 1998 को लगा 100 बिस्तरों वाले अस्पताल के भूमिपूजन व शिलान्यास का पत्थर आज भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है। तब जगमोहन सांसद और डॉक्टर हर्षवर्धन स्वास्थ्य मंत्री थे। यह अस्पताल तब दिल्ली सरकार के अधीन ले लिया गया था और तय हुआ था कि इसे केवल ओपीडी नहीं बल्कि मरीज भर्ती करने के लिहाज से 100 बिस्तरों वाला बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो पाया।
दिल्ली सरकार के राज में इसकी और दुर्दशा हुई, जिसके बाद अदालत से लड़ कर निगम ने साल 2000 में इसे फिर अपने अधीन कर लिया, लेकिन सूरतेहाल तब भी नहीं बदला। अभी भी यहां केवल ओपीडी ही चलता है, वह भी हड्डी व त्वचा रोग का नहीं है। आंख, नाक, कान व गला दिखाने के लिए एक दिन के अंतराल पर डॉक्टर मिलते हैं। 50 कर्मचारियों वाले इस केंद्र पर महिला रोग व दांत के अलावा रोज काय चिकित्सा का ओपीडी चलता है। इसमें रोजाना 5 से लेकर 700 मरीज तक आते हैं। अस्पताल की महिला चिकित्सा अधिकारी (आरएमएस) डॉ सरदाना ने इन हालातों पर कुछ भी बोलने से साफ इनकार करते हुए कहा कि वे केवल जनता के लिए हैं, किसी और से बात भी नहीं करना चाहतीं।
पैसे और इच्छाशक्ति की कमी
कालकाजी में करीब छह साल पहले बना और ‘स्टेट आॅफ द आर्ट’ इमारत का खिताब रखने वाला निगम अस्पताल आज तक अपनी सेवाएं नहीं दे पाया है। नगर निगम स्थायी समिति के अध्यक्ष रहे डॉक्टर वीके मोंगा का कहना है कि हमने बड़ी उम्मीद से आधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पताल बनाने का काम किया था। इसमें बेसमेंट व और भी कई खासियत थी, लेकिन पैसों के अभाव व इच्छाशक्ति के कमी के कारण अभी तक इसका उपयोग नहीं हो पाया है। मोंगा कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में चुने गए प्रतिनिधियों के शैक्षणिक स्तर में कमी के कारण व सरकारों के कामकाज में आपसी तालमेल के अभाव के कारण भी स्वास्थ्य सेवाएं व इनकी जरूरतों पर चर्चा सभी प्रभावित हो रहे हैं। केंद्र में दूसरी व निगम या दिल्ली में दूसरी पार्टी की सरकार होने के बावजूद इससे पहले कभी इस तरह की दिक्कत नहीं आई जैसी आजकल देखने को मिल रही है। साल दर साल बीतने के बाद भी ढंग से काम नहीं हो पा रहा है। अस्पताल की इमारत के बेसमेंट में पानी का एक प्राकृतिक स्रोत भी है जिसके मूल का पता लगाने से लेकर इसके समुचित प्रबंधन के बारे में भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि हमने इस बारे में दिल्ली जल बोर्ड को कई बार लिखा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
अब किसी तरह से वह पानी नाली के रास्ते जल संरक्षण सेंटर की तरफ ले जाया जाता है, जिसका इस्तेमाल सिंचाई व साफ-सफाई के कामों में किया जाता है। इस अस्पताल को चालू करवाने की स्थायी समिति की तमाम कोशिशें नाकाम होने पर अब तय हुआ है कि इसे सफदरजंग अस्पताल के अधीन कर दिया जाए। इसके कुछ कर्मचारी भर्ती किए तो गए हैं, लेकिन अभी तक निगम के अधीन सेवा शुरू करने की कोई कवायद नहीं हो पाई है। सफदरजंग अस्पताल प्रशासन इसे चलाने को तो तैयार हो गया है, लेकिन वह कर्मचारियों के वेतन का बोझ खुद उठाने के लिए तैयार नहीं है। यह बात भी समझ से परे है कि पहले ही कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा सफदरजंग अस्पताल बिना कर्मचारियों के इसके कैसे चला पाएगा। निगम के एक अधिकारी ने बताया कि इस अस्पताल को चलाने के लिए सात से आठ करोड़ रुपए सालाना की जरूरत है जिसका इंतजाम नहीं हो पा रहा है।
तुगलकाबाद मैटरनिटी होम का भी 2012 में उद्घाटन हुआ था, लेकिन गंदगी के कारण यह खस्ताहाल लगता है। यहां एंबुलेंस है, लेकिन फोन करने के बाद भी एंबुलेंस मरीज लेने नहीं पहुंची। कारण बताया गया कि ड्राइवर नहीं है, जबकि यहां पर ड्राइवर को आवास तक मिला हुआ है। तिलक नगर में बना अस्पताल भी शुरू नहीं हो पा रहा है क्योंकि दिल्ली सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। निगम अधिकारी बताते हैं कि यहां भी कर्मचारियों की कमी है। भर्ती के लिए प्रक्रिया चलाई गई, लेकिन कोई आवेदन नहीं करता।

