केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को शादी में देरी, कारोबार में कमी और लोगों की मौत से जोड़ा जा रहा है। लेकिन क्या सरकार के इस फैसले से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है या नहीं। इसी सप्ताह वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ सोशल साइकियाट्री में इस बारे में चर्चा की जाएगी। नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) और इंडियन एसोसिएशन फॉर सोशल साइकियाट्री की ओर से एम्स में होने वाले इस कार्यक्रम में 130 साइकियाट्रिस्ट हिस्सा लेंगे। यह कार्यक्रम 30 नवंबर से 4 दिसंबर तक चलेगा। इसकी थीम ”तेजी से बदलती दुनिया में सामाजिक मनोचिकित्सा” है। इस दौरान मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक परेशानी से परिवार पर बोझ और मानसिक रूप से बीमारों के पुनर्वास पर चर्चा की जाएगी। साथ ही नोटबंदी से मानसिक अवस्था पर पड़ने वाले असर पर भी चर्चा होगी।
एनडीडीटीसी के चीफ डॉक्टर सुधीर खंडेलवाल ने बताया, ”कई सारे मुद्दों पर वैज्ञानिक सेशल होंगे जिससे कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मसलों का हल निकाला जा सके। इस संबंध में हम नोटबंदी से मानसिक अवस्था पर पर पड़े असर पर भी चर्चा करेंगे। वर्तमान में नोटबंदी के मानसिक अवस्था पर असर और अनुभवजनित सबूत नहीं है। लेकिन ऐसे मामले सामने आए हैं जहां शादी में देरी और नौकरियां गई हैं। इस तरह की स्थिति में लोग परेशानी, तनाव महसूस कर सकते हैं। इस तरह की समस्या के दीर्घकालिन असर भी होते हैं और मरीजों को बताने की जरुरत है कि इससे कैसे निपटा जाए।”
बहस के दौरान नीतियों से जुड़े उन निर्णयों पर भी फोकस होगा जिनसे मानसिक अवस्था पर असर पड़ा हो। खंडेलवाल के अनुसार, ”अफगान शरणार्थियों और उससे मानसिक अवस्था पर अध्ययन किए जा चुके हैं। साथ ही राजनीतिक उठापटक को लेकर भी अध्ययन हुए हैं। सरकारों के अचानक बदल जाने से लोगों की मनोदशा पर असर पड़ता है। हम इन सबका उपयोग करेंगे और पता लगाएंगे कि नोटबंदी ने मानसिक अवस्था पर कैसे असर डाला है।”

