अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ट्रॉमा सेंटर में रविवार शाम को आग लग गई। आग ट्रॉमा सेंटर के आॅपरेशन थिएटर नंबर पांच में लगी। राहत की बात यह रही कि इस भीषण आग में कोई हताहत नहीं हुई। ट्रॉमा सेंटर के मुखिया सहित तमाम अधिकारी मौके पर पहुंच गए। शुरुआती जांच में आग की वजह शॉर्ट सर्किट बताई जा रही है। इसके बाद अस्पताल के उस हिस्से में फंसे 50 से 60 मरीजों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

एम्स के जयप्रकाश ट्रॉमा सेंटर में रविवार शाम करीब साढ़े पांच से पौने छह बजे के बीच आग लगी। एम्स सूत्रों के मुताबिक, इसके तुरंत बाद सबसे पहले आॅपरेशन थिएटर से तमाम तरह के गैस सिलेंडर को हटाया गया। इसके रिकवरी रूम से मरीजों को निकाल कर तुरंत ही गहन चिकित्सा कक्ष (आइसीयू) में भेजा गया। करीब छह बजे दमकल विभाग को सूचना दी गई। आग अस्पताल की पहली मंजिल स्थित हड्डी रोग विभाग के आॅपरेशन थिएटर नंबर पांच में लगी। आग ने जल्दी ही यहां स्थित एक और आॅपरेशन थियेटर (ओटी) व इससे सटे स्टोर रूम क ो अपनी चपेट में ले लिया। यहां के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि आग लगने के तुरंत बाद सबसे पहले मरीजों को निकाला, जिससे किसी भी मरीज को नुकसान नहीं पहुंचा।

एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ डीके शर्मा ने बताया कि आग ट्रॉमा सेंटर के आपातकालीन ओटी में लगी थी। चूंकि उस वक्त आॅपरेशन नहीं चल रहा था इसलिए किसी मरीज या डॉक्टर को इससे कोई खतरा नहीं हुआ। आग लगने पर कर्मचारी मरीजों को सुरक्षित वार्ड में शिफ्ट करने में तो लगे रहे लेकिन धुआं भरने से उनको देखने व बचाव कार्य में मुश्किल आ रही थी। धुआं बाहर निकले इसके लिए खिड़कियों के कांच तोड़ दिए गए। आपातकालीन निकास को खोल दिया गया था। हालांकि एहतियातन इमारत के इस ब्लॉक में पूरी तरह से लोगों की आवाजाही रोक दी गई थी। यहां मुख्य द्वार पर तैनात सुरक्षाकर्मी आ रहे नए मरीजों के गेट के बाहर से ही मेन एम्स या सफदरजंग जाने के लिए कह रहे थे।

एम्स के मुख्य परिसर में कई वार्ड, ओपीडी व दफ्तर पोर्टा केबिन में चलते हैं जो किसी भी तरह की आग को तेजी से फैला सकते हैं। आगजनी का खतरा यहां के भूमिगत रिकार्ड रूम में भी है। एम्स के वरिष्ठ चिकित्सक भी मानते हैं कि अगर घटना एम्स के मुख्य परिसर में होती तो भारी नुकसान हो सकता था। गनीमत रही कि आग शाम के वक्त लगी जबकि ओटी बंद था। एम्स ट्रॉमा सेंटर के पूर्व मुखिया डॉक्टर एमसी मिश्र ने बताया कि अगर ओटी चल रही होती तो एनेस्थीसिया के लिए यानी मरीजों को आपरेशन के लिए बेहोश करने में इस्तेमाल की जाने वाली गैस मुख्यत: नाइट्रस आॅक्साइड की आपूर्ति जारी रहती और वह जलने से भारी नुकसान होता।

इसके अलावा कई और तरह की गैसों का भी अस्पतालों में उपयोग किया जाता है। आमतौर से हीलियम, कार्बनडाई आक्साइड व कार्बन मोनो आक्साइड का भी अस्पतालों में उपयोग किया जाता है जो लीक होने की सूरत में काफी नुकसान पहुंचाती। एम्स के कई विभाग व वार्ड पोर्टा केबिन में चलाए जाते हैं। एक समय में ही यहां सैकड़ों मरीजों की भीड़ होती है। आंखों का जांच केंद्र व बुजुर्ग मरीजों के लिए बना जेरियाट्रिक वार्ड भी कंक्रीट की इमारत की बजाय पोर्टा केबिन में चलता है। इसका सघन चिकित्सा वार्ड (एचडीयू) भी इसी के अंदर है जहां न केवल बुजुर्ग मरीज भर्ती होते है बल्कि इनमें से कई तो जीवन रक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर) पर होते हैं।