दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अस्थाई शिक्षकों का भरोसा विश्वविद्यालय प्रशासन से उठ गया है। ये ऐसे करीब 4000 शिक्षक हैं जो परिसर में तदर्थ शिक्षकों (एडहॉक) के रूप में जाने जाते हैं। डीयू के इन एडहॉक शिक्षकों ने विश्वविद्यालय के विजिटर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से गुहार लगाई है कि वे मानवता के आधार पर हस्तक्षेप करें। उन्हें सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि सरकार अध्यादेश के जरिए 8,10, और कुछ मामलों में 16 साल से सेवा दे रहे शिक्षकों को उन्हें अधिकार दिलाएं। पिछले कुछ महीनों में चंद अस्थाई शिक्षकों को स्थाई किया गया। लेकिन प्रक्रिया पर सवाल उठे। गुटबंदी, विचारधारा के तहत नौकरी पक्की करने के आरोप लगे। इसके अलावा कई मामले ऐसे आए जिसमें एक शोध पर कई शिक्षकों ने अपना दावा ठोक दिया। फायदा उठाया। पक्की नौकरी में ‘प्वांइट’ पाया।

एडहॉक शिक्षकों की अपनी पीड़ा है। इसे समय-समय पर वे उठाते रहे हैं। लेकिन इस बार सीधे विजिटर से फरियाद की है। राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में करीब दो हजार से ऊपर तदर्थ शिक्षकों के हस्ताक्षर हैं। उसमें बताया गया है कि किस तरह विश्वविद्यालय प्रशासन कानूनी बाध्यता को पार करने के लिए हथकंडे अपनाता है। एडहॉक शिक्षकों ने सवाल किया है कि वे किस मामले में अयोग्य हैं। सालों से पढ़ा रहे हैं। उनका चयन विशेष चयन समिति की ओर से होता है। विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे इस सेवा के लिए जरूरी योग्यता रखते हैं। कुशल एवं अनुभवी है। इसमें केवल उन्हीं का चयन हो सकता है जो विश्वविद्यालय की ओर से तय की गई योग्यता रखते हैं और पाठन पैनल में सूचीबद्ध होते है। आरक्षण के लिए तय किए रोस्टर के तहत वे रखे गए हैं। फिर वे अयोग्य कैसे? अगर नहीं तो स्थायी क्यों नही?

तदर्थ शिक्षकों ने इस मुद्दे को मानव अधिकार के साथ सामाजिक सरोकार से भी जोड़ा है। उन्होंने कहा कि इन सब में करीब आधे से ज्यादा सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग मसलन अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्ग से हैं। मानकों के आधार पर चयन होने के बावजूद इस कोटे के तदर्थ शिक्षकों का भविष्य पूरी तरह अधर में रहता है। उनका कहना है कि ‘एडहॉक’ चाहे कितने ही वर्षों तक सेवा दे, किंतु उनके वेतन में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं होती है। वे हमेशा प्रवेश वाले वेतन श्रेणी में रहते हैं। प्रोन्नति और उच्च योग्यता के आधार पर मिलने वाले अन्य लाभ तो नहीं ही मिलते हैं। इन्हें महीने में सिर्फ एक आकस्मिक अवकाश लेने का अधिकार है। शादीशुदा महिलाओं को मातृत्व अवकाश तक नहीं मिलता। एक तदर्थ शिक्षक का सवाल था-क्या हम बीमार नहीं होते? या हमें अपने परिवार के विकास का अधिकार नहीं है। ये सब तभी संभव है जब सेवा शर्तों की ओर से निश्चिंत होंगे। तदर्थ शिक्षकों का दावा है कि सालों से विभिन्न स्तर पर आवाज़ उठाते रहे हैं। लेकिन उनकी कहीं नहीं सुनी जा रही।