दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली के निगम चुनावों की तैयारी में जुट गई है। बीती 14 फरवरी को आप सरकार के दो साल पूरे होने के बाद से अब तक लगातार विज्ञापनों के माध्यम से सरकार का बखान किया जा रहा है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार और दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल से मची लड़ाई के कारण पहले जिन बिलों को बिना औपचारिकता पूरी किए लागू कराने की कोशिश की जा रही थी, उन्ही बिलों को अब नियमों के हिसाब उपराज्यपाल की मंजूरी लेकर पास कराया जा रहा है, ताकि उनके पास होने से निगम चुनाव में राजनीतिक लाभ हासिल किया जा सके।
बीते दस साल से निगमों में भाजपा का शासन है। अब तक कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला होने से दोनों दल बारी-बारी से सत्ता में आते रहे। वहीं 2012 में अस्तित्व में आई आप ने 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 और 2015 के चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीत कर तहलका मचा दिया, लेकिन दिल्ली की राजनीति को करीब से जानने वाले नेताओं की कमी के कारण आप के एजंडे से निगमों के परिसीमन आदि बाहर रहे। मई 2016 के हुए निगम उपचुनाव ने पहली बार आप को निगम की ताकत का अहसास कराया।
इस चुनाव में आप को 13 में 5 सीटें तो मिलीं, लेकिन विधानसभा चुनाव जैसी कामयाबी नहीं मिली और परेशानी की बात यह रही कि जिस कांग्रेस के वोट पर आप की बुनियाद खड़ी हुई उसकी वापसी होती दिखने लगी। कांग्रेस को एक बागी समेत पांच सीटें मिलीं। इस चुनाव के बाद आप का तंत्र परिसीमन में पूरी तरह सक्रिय हो गया। पंजाब विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने निगम सीटों के परिसीमन की फाइल उपराज्यपाल को भेजी। केजरीवाल सरकार ने दो साल पहले शपथ लेते ही अपनी प्राथमिकताओं में पंजाब विधानसभा चुनाव को भी शामिल किया था। पंजाब में दिल्ली सरकार के काम का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया और जो काम नहीं हो सके उनका ठीकरा केंद्र सरकार के सिर पर फोड़ दिया गया। इसका उन्हें पंजाब में खूब फायदा भी मिला और लोगों ने कहा कि दिल्ली सरकार को काम ही नहीं करने दिया जा रहा। तब एक रणनीति के तहत फाइलें नियमों के हिसाब से उपराज्यपाल नहीं भेजी जा रही थीं। जब उपराज्यपाल कार्यालय ने नियमों के हिसाब से फाइल भेजने को कहा तो खुद केजरीवाल ने ऐसा कराया। अतिथि शिक्षकों के वेतन और न्यूनतम मजदूरी के बिल में भी वही किया गया। इस तरह के कई और फैसले जिनसे केजरीवाल सरकार को निगम चुनाव में लाभ होगा, आने वाले दिनों में भी नियमों के हिसाब से किए जाने की उम्मीद है। हालांकि इसके साथ ही दूसरी घोषणाएं भी होने लगी हैं। सरकारी अस्पतालों में इलाज और दवा तो शुरू से ही मुफ्त है, समस्या उनकी उपलब्धता की है। पूरी दिल्ली में केवल लोकनायक अस्पताल की एमआरआइ मशीन ठीक है, बाकी मरीज कहां जाएंगे। जब डॉक्टरों को महंगी दवाएं लिखने से रोका जाएगा और निजी अस्पतालों में गिनती के मरीजों को ही भेजा जाएगा तो उसका लाभ किसको होगा।
आप ने निगम चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित करना भी शुरू कर दिया है। इससे पहले केवल स्वराज इंडिया ने ही उम्मीदवार घोषित किए हैं। माना जा रहा है कि अगर पंजाब विधानसभा के नतीजे आप के पक्ष में आए तो उसका सीधा लाभ उसे निगम चुनाव में मिलेगा और भाजपा का सफाया हो जाएगा। वहीं अगर पंजाब में कांग्रेस की जीत होती है तो उसकी दिल्ली में भी निगमों के रास्ते सत्ता में वापसी हो सकती है। हालांकि इस बात की उम्मीद कम ही है, लेकिन फिर भी अगर पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन की वापसी होती है तो दिल्ली में भी भाजपा बरकरार रहेगी। भाजपा ने अपने तय 36 फीसद वोटों को बढ़ाने के लिए ही बिहार के लोकप्रिय भोजपुरी गायक मनोज तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी है। हालांकि अभी इससे दिल्ली के माहौल में कोई भी बदलाव होता नहीं दिख रहा है। वहीं टिकटों की उम्मीद में एक दल के नेता पहले अपने दल में और फिर दूसरे दल में हाथ-पांव मारते दिख रहे हैं।
