एक तरफ नगर निगम की सीटों के परिसीमन के बाद सीटों के आरक्षण के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर हो गई। मामले की सुनवाई आठ मार्च को होनी है। कई और याचिका दायर किए जाने की तैयारी है। दूसरी तरफ दिल्ली के तीनों प्रमुख दलों ने चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस में तो पिछले कई दिनों से आवेदन लिए जा रहे हैं। बुधवार को आवेदन करने की आखिरी तारीख होने पर प्रदेश दफ्तर में दावेदारों का मजमा लगा। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता कि यह पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों में हाशिए पर पहुंच गई है। भाजपा में हर स्तर पर उम्मीदवार तय करने के लिए समिति बनाने का काम पूरा कर लिया है। दिल्ली सरकार में काबिज आम आदमी पार्टी (आप) पहली बार निगम चुनाव में हाथ अजमाएगी।

तीनों नगर निगमों में आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने के प्रावधान हैं और आबादी के हिसाब से उत्तरी नगर निगम में 20, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में 15 और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 11 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए गए हैं। इन सीटों में भी आधी सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। दिल्ली की 70 में से दो विधानसभा-नई दिल्ली और दिल्ली छावनी का इलाका निगमों के अधीन नहीं है बाकी 68 सीटों के नीचे 2007 से चार-चार सीटें बनाई गई थीं। आबादी का औसत बढ़ने के बाद इस बार के परिसीमन में पहले यह विवाद हुआ कि इस बार एक विधानसभा के नीचे सात तो तीन के नीचे छह-छह और 21 के नीचे तीन-तीन सीटें और बाकी 31 के नीचे चार-चार सीटें बनीं। इस पर तो कम विवाद हुआ, असली विवाद तो सीटों के आरक्षण पर हो रहा है। विधान के मुताबिक, आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती है। संविधान के 74वें संविधान संशोधन के तहत हर पांच साल के बाद सामान्य, महिला, अनुसूचित जाति व अनुसूचित महिला हेतु नियमित रोटेशन किए जाने की व्यवस्था की गई थी। इसके पीछे की मंशा यह थी कि हर क्षेत्र में बारी-बारी से सामान्य, महिलाएं, अनुसूचित जाति व अनुसूचित महिला को मौका मिलता रहे। इसके लिए एक स्थाई व्यवस्था बनाने का हलफनामा भी दिल्ली चुनाव आयोग दिल्ली हाई कोर्ट में 2012 में दे चुका था।

बावजूद इसके सुल्तानपुर माजरा, गोकुलपुर, त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी के चारों वार्ड आरक्षित कर दिए गए हैं। करोलबाग, तुगलकाबाद के तीनों सीट आरक्षित कर दिए गए हैं। दूसरी तरफ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीट बवाना के छह में से एक भी सीट आरक्षित नहीं है और दूसरी आरक्षित विधानसभा सीट पटेल नगर में एक सीट आरक्षित है। 2012 के चुनाव के पहले निगम का विभाजन करके तीन निगम बनाए गए लेकिन सीटें 272 ही रही। निगम के विधान के मुताबिक हर नई जनगणना यानी दस साल पर निगम की सीटों का परिसीमन किया जाना अनिवार्य है। उसी के आधार पर निगम का नया चुनाव होता है। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप को मिले प्रचंड बहुमत के बाद पिछले साल नगर निगमों के 13 सीटों के उपचुनाव में आप को वैसी सफलता नहीं मिली जैसी विधानसभा चुनाव में मिली थी। उसके बाद दिल्ली का पहला बड़ा चुनाव इस साल अप्रैल में निगमों का ही होना है।