सोमवार को संपन्न हुई विधानसभा की चार दिनों की कार्यवाही से दिल्ली की जनता के लिए प्रस्ताव और संकल्प के रूप में आश्वासनों का पिटारा निकला। अधिकारियों के लिए समितियों का डंडा और विधानसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता और सदन की गरिमा पर ढेरों सवाल भी खड़े हुए। इन सब के बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सदन की कार्यवाही से अमूमन गायब ही रहे। वहीं एजंडा रहित सत्र बुलाने का आरोप लगा चुके नेता प्रतिपक्ष भी सदन में नहीं दिखे। विधानसभा में विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं की चर्चा की, दिल्ली से पढ़ाई करने वालों के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण और अतिथि शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण संबंधी प्रस्ताव पारित किए गए। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों के मिलने वाली छात्रवृति में विलंब पर चर्चा हुई और सरकार का आश्वासन मिला।

नालों में गाद की सफाई को लेकर पीडब्लूडी के कामकाज पर याचिका समिति की रिपोर्ट जिसमें अधिकारियों को जिम्मेवार ठहराया गया, ग्रामसभा जमीन पर कब्जा पर प्रस्ताव और अनधिकृत कालोनियों की समस्याओं पर समिति का गठन चार दिनों के विधानसभा सत्र के कामकाज का संक्षिप्त ब्योरा है। लेकिन, साथ में कुछ ऐसी भी घटनाएं घटीं जो कहीं न कहीं दुर्भाग्यपूर्ण थीं, दर्शक दीर्घा से दो लोगों ने मंत्री सत्येंद्र जैन से इस्तीफे की मांग करते हुए सदन के अंदर पर्चियां फेंकीं, जिन्हें विधायकों ने कथित तौर पर मार्शल से छीनकर कथित रूप से पीटा और एक नाराज आप महिला कार्यकर्ता की भी विधायकों द्वारा सदन परिसर में पिटाई के आरोप लगे। सदन में मार्शल का भी जमकर उपयोग हुआ। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थितियां आती रहती हैं, लेकिन उन्हें कुछ घंटे बैठाने के बाद चेतावनी के साथ छोड़ दिया जाता है।

जब विपक्ष ने अध्यक्ष के फैसले का किया स्वागत

विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने कहा, ‘यह विधानसभा के पतन का समय है, एक समय ऐसा भी था कि विधानसभा अध्यक्ष एक रेफरी की तरह निष्पक्ष भूमिका में रहते थे, उनका उद्देश्य विपक्ष के सभी सदस्यों बोलने का समय देना होता था’। उन्होंने चौधरी प्रेम सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने पांचों साल बजट भाषण की शुरुआत नेता विपक्ष जगदीश मुखी से करवाई। ऐसे भी नजारे देखने को मिले जब अध्यक्ष सत्ता पक्ष के विधायक को सदन से बाहर किया, अध्यक्ष ने विपक्ष के पक्ष में निर्णय दिया तो विपक्ष ने मेज थपथपा कर स्वागत किया। बकौल शर्मा, ‘आज तो पूरा नजारा ही बदल गया है, अध्यक्ष अब चाटुकारिता में लगे होते हैं। अब जो हो रहा है, पतन है, पहले स्पीकर के कमरे में कार्य संचालन की बैठक होती थी, पूछते थे पक्ष विपक्ष से आपके क्या मुद्दे हैं’।

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने केजरीवाल सरकार द्वारा सरकारी अधिकारियों को दंडित करने के लिए विधानसभा का इस्तेमाल करने को संविधान के प्रावधानों के साथ ‘गंभीर अनियमितता’ बताया। यादव के मुताबिक, ‘सरकार विधानसभा की समितियों के मार्फत अधिकारियों को दंडित कर संवैधानिक कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचा रही है। अभी तक जो काम मुख्यमंत्री कार्यालय से होता था वही काम अब विधानसभा से हो रहा है’। उन्होंने कहा कि ‘अगर विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका का भी काम करने लगेगी तो संवैधानिक प्रणाली का क्या होगा।’ एसके शर्मा ने भी कहा, ‘सदन के लिए मंत्री सरकार हैं, नाला साफ नहीं है तो संबंधित मंत्री जिम्मेदार है, राष्ट्रपति ने जो दिल्ली में विधानसभा की कार्यवाही के लिए नियम बनाए हैं उसके अनुसार मंत्री विभाग का मुखिया विभाग होता है और जिम्मेदारी भी उसी की होती है।

विधानसभा की किरकिरी है अध्यक्ष का सजा सुनाना

एसके शर्मा ने कहा कि पहले मार्शल का इस्तेमाल कर विधायकों को बाहर निकालने की घटना कभी-कभी होती थी। बकौल शर्मा जब किसी दल को भारी बहुमत आता है तो विपक्ष सत्ताधारी दल से ही निकल कर आना चाहिए जो उनकी नीतियों का विरोध करे, लेकिन आज तो विधायकों को प्रसाद बांट उनकी निष्ठा खरीद ली गई है और जो आवाज उठा रहे हैं उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा। दर्शक दीर्घा से पर्चा फेंकने के मामले का जिक्र करते हुए शर्मा ने कहा कि अध्यक्ष द्वारा विशेषाधिकार का उपयोग कर सजा सुनाया जाना विधानसभा की किरकिरी है। ऐसा लग रहा है सदन न होकर कोर्ट हो गया और सजा भी कौन दे रहे हैं जो खुद मार पीट कर रहे हैं।