बड़ा वेतन, छोटी जिम्मेदारी शायद ही कहीं एक साथ पाई जाती है। मनोज श्रीवास्तव की पुस्तक ‘आत्मदीप बनें’ का स्वीकारभाव और जिम्मेदारी का अध्याय नेपोलियन के इस उद्धरण के साथ शुरू होता है। सकारात्मक ऊर्जा से भरी इस किताब में लेखक कहते हैं कि अगर आप पहले ही किसी को खारिज कर देते हैं तो आप उससे दूर चले जाते हैं। फिर आपको उसे बदलने का मौका नहीं मिल पाता है। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित मनोज श्रीवास्तव की इस किताब को पढ़ने के बाद आप स्वीकारने की ऊर्जा से लबरेज होते हैं। यह किताब हर तरह की नकारात्मकता के खिलाफ खड़े होने की आवाज देती है। लेखक हमें अपने अंदर एक बच्चे वाला भाव पैदा करने की सलाह देते हैं। उनके मुताबिक, एक बच्चा हर किसी को इसलिए अच्छा लगता है कि वह किसी भी तरह के अहंकार भाव से दूर रहता है। बच्चे के स्वीकार भाव का स्तर बहुत ऊंचा होता है। इसी तरह लेखक उन व्यक्तियों को भी सावधान करते हैं जो काम करते वक्त पूर्वग्रह का चश्मा लगाए रहते हैं। पूर्वग्रह एवं विश्वास की मान्यता पर बात करने के लिए वे जैन दर्शन का उद्धरण देते हुए कहते हैं कि हम व्यक्तियों में से कुछ गुणों को जानकर संपूर्ण निष्कर्ष निकाल लेते हैं। हमारे मध्य विवाद का भी यही कारण है। हमारी मान्यता, सूचनाएं और हमारे द्वारा ग्रहण किए गए अनुभव हमारे जीवन और सोच को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। और अगर हम छन्नी विचारधारा से इसे देखेंगे तो हमारा भूतकाल का अनुभव सत्य हो जाता है।
बच्चों की परवरिश के मामले में भी मनोज श्रीवास्तव अभिभावकों को खुद भी एक बच्चे सा मन रखने की सलाह देते हैं। जितना हम अपने मन के साथ अभिभावकत्व कर लेंगे तो हमें पता चल जाएगा कि दूसरे के साथ कैसा बर्ताव करें। लेखक कहते हैं कि सभी के पास मन है इसलिए दूसरे के मन को बच्चे के रूप में देखिए। इसके साथ ही परिस्थिति, दृष्टिकोण और डिटैचमेंट अध्याय में दादी जानकी के उद्धरण ‘राई को पहाड़ नहीं, बल्कि पहाड़ को राई बनाओ’ से शुरुआत करते हुए लेखक बेबाकी से कहते हैं कि आप किसी बात पर जिस मात्रा में प्रतिक्रिया देते हैं, वही समस्या का आकार होता है। उनकी सलाह है कि समस्या पर नहीं समाधान पर चिंतन करें। वे डिटैचमेंट का भाव स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि इसका मतलब हालात से भागना नहीं बल्कि हालात का स्व की स्थिति के सहारे मुकाबला करना होता है। आंतरिक सुंदरता और अध्यात्म के विभिन्न आयामों के जरिए श्रीवास्तव बताते हैं कि हम मानसिक कमजोरियों को कैसे दूर कर सकते हैं। किताब का हर अध्याय एक-दूसरे से नत्थी हो जाता है।