भारतीय शास्त्रीय नृत्य में गुरु के लिए सौभाग्य होता है कि उसे योग्य शिष्य मिले। गुरुओं का मानना है कि पात्रता के अनुरूप ही हम विद्या का दान करते हैं। नहीं तो सारी मेहनत व्यर्थ है। कुछ ऐसा ही भरतनाट्यम नृत्यांगना व गुरु संध्या पुरेचा का सोचना है। वे मानती हैं कि वैसे तो उनकी कई शिष्याएं अच्छा नृत्य कर रही हैं पर चौदह सालों से उनके सानिध्य में नृत्य सीख रही शिष्या सुहानी धनकी की मेहनत और लगन खास है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित समारोह में भरनाट्यम नृत्यांगना सुहानी धनकी ने नृत्य पेश किया।

नृत्यांगना सुहानी धनकी ने 2012 में अपनी अरंगेत्रम प्रस्तुति दी थी। वह अपनी गुरु के साथ सामूहिक नृत्य प्रस्तुति में शिरकत करती हैं। इसके अलावा, वह किंकणी नृत्य उत्सव, होराइजन सीरीज, उदयशंकर नृत्य समारोह, रेनड्रॉप फेस्टिवल में एकल नृत्य प्रस्तुत कर चुकी हैं। उन्हें नृत्य शिरोमणि और नटराज गोपीकृष्ण सम्मान मिल चुके हैं।
इस समारोह में सुहानी ने अपनी गुरु की नृत्य परिकल्पना शशिवार्चनाह्ण पेश किया। इसकी संगीत परिकल्पना एनएन शिवप्रसाद ने की थी। अन्य संगत कलाकारों में वायलिन पर वीएसके चक्रपाणी और मृदंगम पर सतीश कृष्णमूर्ति शामिल थे। संध्या पुरेचा ने नटुवंगम पर संगत किया।
प्रस्तुति का आरंभ नटराज कौतुवम से हुआ। यह राग हंसध्वनि और आदि ताल में निबद्ध था। इसके अगले अंश में खंड चापू ताल में निबद्ध अलरिपु थी। इस प्रस्तुति में सुहानी भाव भंगिमाओं से शिव के त्रिशूलधर, नंदीवाहन, शशिभूषण, नादयोगी रूपों को दर्शाया। उन्होंने पदम कटितुनील में चिदंबर मंदिर में विराजित शिव और उनसे जुड़ी कथा को संक्षिप्त रूप में पेश किया। यह राग यदुकुल काम्बोदी और आदि ताल में निबद्ध था। इसकी खासियत थी कि इसमें तांडव के विभिन्न रूप-आनंद, संध्या, उमा, गौरी, कार्तिक, त्रिपुर, उर्ध्व को दर्शाया। अगली प्रस्तुति वरणम शिवानंद की रचना पर आधारित थी। रचना-स्वामी बरू पंक पाणि- राग अठाना और रूपक ताल में निबद्ध थी। भगवान शिव के भक्त महाराजा शिवाजी के प्रसंग का निरुपण करते हुए, नृत्यांगना सुहानी ने महादेव-मारकंडेय व गजासुर वध प्रसंगों को संचारी भाव के जरिए चित्रित किया।

अधर्नारीश्वर स्त्रोत और शिव पंचाक्षर स्त्रोत पर आधारित नृत्य में शिव को मोहक स्वरूप नजर आया। चांपेय गौरार्द्ध शरीर पर आधारित अधर्नारीश्वर में करणों का सुंदर प्रयोग था। यह राग मालिका और चतुश्र ताल में निबद्ध था। वहीं, नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय पंचाक्षर स्त्रोत में अडवुओं का मोहक इस्तेमाल किया गया था। यह प्रस्तुति राग यमन कल्याणी और खंड एक ताल में निबद्ध थी। गुरु पार्वती कुमार की नृत्य रचना सुहानी की अगली पेशकश थी।

मराठी रचना अजा सोनिया चा दिवस राग रीति गौला और आदि ताल में निबद्ध थी। गोपाल कृष्ण भारती की रचना नटनम आडिनार में शिव के नटराज रूप को विस्तार से पेश किया। यह राग बसंत और खंड अट ताल में निबद्ध थी। उन्होंने अपनी नृत्य का समापन राग परस और आदि ताल में निबद्ध तिल्लाना से किया।

नृत्यांगना सुहानी का नृत्य काफी संतुलित और स्पष्ट था। अंगों, हस्तमुद्राओं, आंखों, भृकुटियों के संचालन में सर्तकता बरतते हुए भी कोमल सहजता थी। उन्होंने लय व ताल के साथ दुरुस्त और दमदार पद संचालन पेश किया। लेकिन, उसमें पैर के काम में बेवजह का जोर नहीं डाला गया था। युवा नृत्यांगना सुहानी को अपने करियर का अभी लंबा सफर तय करना है। इसलिए उन्हें और बेहतर से बेहतरीन की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।