राजधानी में 23 अगस्त को बवाना विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा, कांग्रेस और सत्ताधारी आम आदमी पार्टी तीनों ही अपने प्रचार में स्टार प्रचारकों से लेकर घर घर जाकर वोट मांगने और नुक्कड़ सभा करने में जुटे हुए हैं। लेकिन असल मे ये चुनाव अगर किसी नेता के लिए सबसे ज्यादा अहम है या यों कहें कि अस्तित्त्व का सवाल है तो वो है दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल।

राजधानी में उनकी पार्टी से टूटे स्वराज अभियान पार्टी और उनके विरोधी कपिल मिश्र भी इस चुनाव के नतीजों पर टकटकी लगाए हुए हैं। बवाना विधानसभा का उपचुनाव केजरीवाल के भविष्य का फैसला कर सकता है। फरवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा की 70 में 67 सीट जीतने वाली आप की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार गिर रहा है। वह या तो चुनाव हार रही है या पार्टी के उम्मीदों के विपरीद प्रदर्शन कर रही है। आप की लगातार हार के सिलसिले को देखें तो सितंबर 2015 में दिल्ली विश्वविधालय छात्रसंघ चुनाव में आप की छात्र इकाई दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर रही। अप्रैल 2016 में हुए नगर निगम उपचुनाव में वह दूसरे नंबर पर रही। मार्च 2017 में पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई। पंजाब में दूसरे नंबर पर रही और गोवा में खाता भी नहीं खोल सकी। अप्रैल 2017 में राजौरी गार्डन उपचुनाव में आप उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई।

अप्रैल 2017 में ही दिल्ली नगर निगम में वह भाजपा से हारी। इन शर्मनाक हार और केजरीवाल के बड़बोले बोलों की वजह से पार्टी की लगातार पार्टी की लोकप्रियता घट रही है। जिसका नतीजा है पार्टी के भीतर केजरीवाल को लेकर असंतोष और आपसी मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। आप के भीतर ये सवाल उठने लगे कि अरविंद केजरीवाल से दिल्लीवासियों का मोहभंग हो रहा है। जिसका नतीजा है कि पार्टी में अलगाव की स्थिति है। इन सब को ध्यान में रखते हुए केजरीवाल को अरविंद बवाना विधानसभा उपचुनाव जीतना ही होगा। जबकि आप और कांग्रेस 1-1 वार्ड जीते थे। कांग्रेस की ओर से तीन बार विधायक रह चुके सुरेंद्र कुमार को टिकट दिया गया है। पार्टी ने 40 पूर्व विधायक और 20 मौजूदा पार्षद को यहां प्रचार के काम में लगाया है। हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा भी यहां प्रचार में जुटे हैं क्योंकि यहां के गांव में जाटों की आबादी अच्छी-खासी है।