केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद से अब तक नकदी की किल्लत दूर नहीं हो पाई है। इस दौरान पुराने नोट बदलवाने के लिए लोगों ने क्या कुछ नहीं किया। आम लोग घंटों बैंक की कतारों में जूझते रहे लेकिन कई रसूख वाले लोगों ने जुगाड़ से ही नोटों की अदला-बदली कर ली। हालांकि इनमें से ज्यादातर आरोपों की जांच पुलिस नहीं कर पाई। करीब एक हफ्ते पहले सेक्टर-51 में रहने वाले एक उद्यमी के घर बिजली विभाग का एक लाइनमैन कुछ काम करने आया था। काम होने के बाद उसने पैसे मांगे, तो उद्यमी की पत्नी ने उसे 500 रुपए का पुराना नोट थमा दिया। चूंकि लाइनमैन उद्यमी का पुराना जानकार था, तो उसने उद्यमी की पत्नी से कहा कि ये नोट तो बंद हो चुके हैं। अगर आपके पास नए नोट नहीं हैं, तो पैसे बाद में दे दीजिएगा। साथ ही उसने बताया कि नए नोट नहीं मिल रहे हैं, तो वह पुराने नोट बदलवा सकता है। उसके दावे की जांच के लिए उद्यमी की पत्नी ने उसे 500 रुपए के नोटों की एक गड्डी (50,000 रुपए) बदलवाने के लिए दी। उस लाइनमैन ने 3 घंटे के भीतर ही 50 हजार की रकम 2000 और 100 रुपए के नोटों में लाकर उद्यमी की पत्नी को थमाई और कहा कि अगर और नोट हैं तो वह उन्हें भी बदलवा देगा।
रोजाना बैंकों और एटीएम के बाहर महज 2000 रुपए के लिए धक्के खाते लोगों की परेशानी के बीच इतनी आसानी से इतनी बड़ी रकम बदले जाना भले ही हैरान करने वाला है, लेकिन पूंजीपतियों और बड़े नौकरशाहों के लिए बैंकों से नोट बदलवाना नकदी संकट के दौर में भी काफी आसान बना हुआ है। ग्रेटर नोएडा और नोएडा की कई बैंक शाखाओं के प्रबंधकों पर चहेते लोगों की बड़ी रकम को बदलवाने के आरोप लगे हैं। ज्यादातर मामलों की शिकायत जिलाधिकारी से की गई है, जिसकी जांच एक कमेटी को सौंपी गई है। हालांकि इनकी जांच कब होगी और नतीजा कब आएगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन तब तक बैंक प्रबंधकों और ज्यादा रकम वालों की साठगांठ आम लोगों की जरूरत की रकम पर ग्रहण लगाए रहेगी।
500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने के बाद काम-धंधे और उद्योगों की रफ्तार तो जरूर रुक गई है, लेकिन हर समय नकदी नहीं होने का बैंक प्रबंधकों का दावा सरासर गलत है। नोटबंदी के शुरुआती दिनों में तो ठेकेदारों, दलालों और राजनीतिक दलों से सरोकार रखने वाले लोगों ने बैंक प्रबंधकों से मिलकर आइडी के जरिए 4000 रुपए बदलवाने का खेल खेला। बदलवाने की रकम 2000 होने और बाद में केवल खातों में रुपए जमा होने के निर्देश के बाद बैंक प्रबंधकों ने एक ही दिन में सैकड़ों खाते खोलकर चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए हजारों गरीब खातेदारों के साथ धोखा किया। नोएडा, ग्रेटर नोएडा के ही कुछ बैंकों में ग्रामीण इलाकों से बसों में भरकर लाए मजदूर और किसानों के सैकड़ों खाते एक ही दिन में खोले गए। हर खाते में 25 हजार रुपए की रकम जमा कराई गई। जिस ठेकेदार ने बैंक प्रबंधक के साथ मिलकर यह गोरखधंधा किया, उसी ने हर खाता खुलवाने वाले को 2000 रुपए थमाकर निकासी पर्ची पर दस्तखत कराकर रख लिया और एक हफ्ते के भीतर उन खातों में जमा सारी रकम को नए नोटों के रूप में निकाल लिया गया।
इस तरह से कई शाखाओं में औसतन 50 लाख से 1 करोड़ रुपए हर तीसरे दिन निकाले गए हैं। शाखा बंद होने के बाद रकम का लेन-देन हुआ, जिसके कारण जनता ज्यादा शोर-शराबा नहीं कर पाई। अलबत्ता इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय के हरकत में आने और दिल्ली के दो बैंक प्रबंधकों के गिरफ्तार होने के बाद ऐसे मामलों की जानकारी लीक होने लगी है, जिनकी शिकायत जिलाधिकारी के बजाए सीधे प्रवर्तन निदेशालय या क्राइम ब्रांच से कराने की तैयारी है। ऐसे मामलों में खास बात यह है कि किसी भी बैंक प्रबंधक से ऐसे गोरखधंधे की बात करने पर कोई भी अपने समकक्ष प्रबंधक को सीधे तौर पर दोषी मानने को तैयार नहीं है। सभी कुछ न कुछ और वजह या व्यकिगत संपर्कों के कारण इसे मदद का नाम दे रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ, ऐसे मामलों की सूचना फैलने से लोगों में नाराजगी बढ़ती जा रही है।