बीमारी के कारण प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन की पार्टी हाई कमान से अपनी जिम्मेदारी छोड़ने की पेशकश न माने जाने से यह तो तय सा हो गया है कि लोकसभा चुनाव तक माकन पद पर बने रहेंगे। इसी के साथ यह चर्चा जोरों पर है कि बिहार और दूसरे राज्यों जैसा दिल्ली कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष या उसी जैसे पद पर कुछ नेताओं का नियुक्ति की जाए। कई चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के परंपरागत मतदाता बड़ी तादात में आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़ते चले गए। कांग्रेस नेतृत्व को यह तथ्य परेशान कर रहा है कि अगर आने वाले दिनों में कांग्रेस का वोटर वापस नहीं लौटा तो वह ‘आप’ का स्थाई वोटर बन जाएगा। इस महीने हुए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव (डूसू) में भले ही भाजपा समर्थित छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ज्यादातर सीटें जीतीं लेकिन कांग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआइ एक प्रमुख सीट जीत गई और परिषद को कड़ी टक्कर दे पाई। ‘आप’ की छात्र शाखा छात्र युवा संघर्ष समिति (सीवाइएसएस) चुनाव में कहीं नजर नहीं आई। बल्कि भाकपा माले की छात्र शाखा आइसा उनके साथ मिलकर भी अपना दो साल पहले का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई। डूसू को दिल्ली का छोटा चुनाव माना जाता है, इसलिए कांग्रेस के नेता खासे उत्साहित हैं।
अजय माकन को करीब चार साल पहले 2015 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने मुख्य मंत्री का उम्मीदवार बनाया गया और चुनाव के बाद अरविंदर सिंह लवली को हटाकर प्रदेश अध्यक्ष। माकन पार्टी को खड़े करने में लगे रहे लेकिन पिछले साल के निगम चुनाव में अनेक नेता उनकी कार्य प्रणाली पर सवाल उठाकर पार्टी छोड़ गए। असर चुनाव पर हुआ। भले ही कांग्रेस के वोट में बढ़ोतरी हुई लेकिन चुनाव में ‘आप’ ही दूसरे नंबर पर रही। इसके चलते माकन ने इस्तीफा दिया। जिसे पार्टी नेतृत्व ने नहीं स्वीकारा। वे हड्डी के रोग से वास्तव में परेशान हैं। इस बार उन्होंने बीमारी के चलते पद से हटने की पेशकश की लेकिन अभी तक उसे स्वीकार किए जाने का संकेत पार्टी की ओर से नहीं है।
पार्टी के अनेक नेता यही दोहरा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में छह महीने से कम समय रह गया है। अब बदलाव करने का मौका नहीं है। माकन की पार्टी नेतृत्व में अच्छी पैठ है। इसी कारण कुछ बड़े नेताओं के चाहने के बावजूद माकन ने लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में ‘आप’ से किसी भी तरह का समक्षौता करने का विरोध किया। इतना ही नहीं ‘आप’ के बजाए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से तालमेल करने का सुझाव भी दिया गया था। दिल्ली में अभी कांग्रेस सीलिंग के खिलाफ जोरदार आंदोलन चला रही है। वह ‘आप’ और भाजपा को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। दिल्ली की 15 साल मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित से भी अजय माकन ने संबंध सामान्य करने के प्रयास किए हैं। दिल्ली के हर कोने में पार्टी के कार्यक्रम होने लगे हैं। ऐसे में पार्टी इस हाल में पार्टी प्रमुख बदलकर नया खतरा लेने से कतरा रही है। पार्टी को मुख्य रूप से दलित, अल्पसंख्यक, कमजोर वर्ग, पूर्वांचल के प्रवासी (बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी), दिल्ली देहात को लोगों में बड़ा समर्थन था। उन्ही के बूते कांग्रेस सालों दिल्ली पर राज करती रही। अब इस वर्ग में ‘आप’ का दबदबा कायम हो गया है।
इधर, अल्पसंख्यक उसी दल के साथ जाएगा जो भाजपा को हराता दिखे। इसके लिए जरूरी है कि एक और मजबूत वर्ग उसके साथ जुड़े। दिल्ली के 70 विधानसभा सीटों में से 50 पर पूर्वांचल के लोग निर्णायक स्थिति में हैं। इसीलिए भाजपा ने वोट बैंक बढ़ाने के लिए बिहार मूल के मनोज तिवारी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया। उसका असर नगर निगम चुनाव में दिखा। यह वर्ग कांग्रेस के साथ था। इसी वर्ग के महाबल मिश्र पहली बार कांग्रेस के टिकट पर पश्चिम दिल्ली से सांसद बने। अब संभव है जिन नेताओं का नाम अजय माकन के विकल्प में लिया जा रहा था उनमें से कुछ को दूसरे राज्यों के तर्ज पर पार्टी में बड़ा पद देकर पार्टी को मुख्य मुकाबले में बनाए रखने का प्रयास करे। जिस तरह से मुकेश शर्मा को सीलिंग के खिलाफ चल रहे आंदोलन की जिम्मेदारी दी गई है। उसी तरह अन्य नेताओं को भी अलग-अलग जिम्मेदारी दी जाए लेकिन प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन को ही बनाए रखे जाने के हर तरफ से संकेत मिलने लगे हैं।
