राजधानी के अस्पतालों में आए दिन डॉक्टरों, नर्सों और तीमारदारों के बीच मारपीट की नौबत आती है। इसकी एक बड़ी वजह कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी है। केंद्र सरकार के अधीन चलने वाले पांच अस्पतालों में ही करीब 2500 नर्सों के आबंटित पद खाली पड़े हैं। कई अस्पतालों में मरीजों व कर्मचारियों की संख्या में भारी अंतर है। अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं नहीं होने के कारण एक बिस्तर पर दो-तीन मरीजों का इलाज किया जा रहा है। वहीं कर्मचारियों की ओर से अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल होने पर मरीजों के परिजन मारपीट पर उतर आते हैं। अस्पतालों के खाली पदों को लेकर सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विज्ञापन निकालने के बाद परीक्षा कराने में ही तीन साल लग गए। अदालत के दखल से किसी तरह हुई परीक्षा के बाद भी अभी तक भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। अस्पतालों में मरीजों की देखभाल मुख्य रूप से नर्सों के जिम्मे ही रहती है। दिल्ली में केंद्र सरकार के पांच अहम अस्पताल-सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया, कलावती सरन बाल चिकित्सालय, लेडी हार्डिंग और सुचेता कृपलानी में नर्सों की भारी कमी है।

वहीं एक आरटीआइ से पता चला है कि दिल्ली के निगम अस्पतालों व डिस्पेंसरीज भी डॉक्टरों की 40 फीसद कमी है। पैरामेडिकल स्टाफ की 45 फीसद, नर्सों की 22 फीसद और सफाईकर्मियों की 29 फीसद कमी है। इसी तरह दिल्ली सरकार के अस्पतालों में भी डॉक्टरों की संख्या अभी भी 25 फीसद कम, पैरामेडिकल स्टाफ की 31 फीसद, नर्सों की 19 फीसद और मजदूरों की 37 फीसद कम है। सफदरजंग अस्पताल में नर्सों के करीब 250 पद खाली पड़े हैं। इसी तरह यहां पर कई साल पहले बने न्यू इमरजंसी ब्लॉक के लिए भी करीब 1517 नर्सों की भर्ती होनी है, लेकिन यह मामला आउटर्सोसिंग के जुगाड़ में लटका पड़ा है। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में करीब 300 नर्सों के पद खाली पड़े हैं। अस्पताल की अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक पूनम कुमारी ने नर्सों की कमी को देखते हुए सरकार से कहा है कि हम ठेके पर भर्ती नर्सों को नहीं निकालेंगे क्योंकि नर्सों के काफी पद खाली पड़े हैं और उनकी जरूरत है। कलावती सरन अस्पताल में नर्सों के 82 पद खाली हैं। यहां भर्ती के बाद नियुक्ति पाने के लिए नर्सों को आंदोलन की राह लेनी पड़ी।

इसी तरह लेडी हार्डिंग अस्पताल में 290 नर्सों के पद खाली पड़े थे, जिनकी भर्ती के लिए हुई परीक्षा पास करने वाले 266 नर्सों में से केवल 70 नर्सों को ही योग्य पाया गया। यहां कुल मिलाकर 267 नर्सों की कमी है। 875 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में ही नहीं, बल्कि सफदरजंग व आरमएमएल सहित कई अस्पतालों एक बिस्तर पर दो से तीन मरीजों का इलाज किया जाता है। लेडी हार्डिंग में करीब 2000 भर्ती मरीजों और 9000 ओपीडी मरीजों का इलाज होता है। अस्पताल के नर्स विजय ने बताया कि एक बिस्तर पर दो-तीन मरीजों का इलाज होता है। इससे मरीज पहले ही बौखलाए रहते हैं, उस पर कम स्टाफ। किसी के भी इलाज में कमी या देरी होने पर मरीज के तीमारदार मारपीट पर उतर आते हैं। इसका समाधान बुनियादी संसाधन व मानव संसाधन बढ़ा कर ही किया जा सकता है, गार्ड या मार्शल से नहीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले से काम कर रही नर्सों को बिना नोटिस बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इससे मरीज परेशानी झेल रहे हैं। हम उनके और अपने लिए ही लड़ रहे हैं।