अब पहले वाला कटरा नहीं रह गया है। समय के साथ अब यहां की चहल – पहल बदल गई है। तीर्थयात्रियों की भीड़ का जमावड़ा सबसे पहले यहीं होता है। क्यों कि माता वैष्णव देवी के दर्शन के लिए जम्मू से कटरा आना ही होगा। यहीं से जय माता दी की गूंज कोसों तक सुनाई पड़नी शुरू हो जाती है। इसलिए यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तौर पर तीर्थयात्रियों पर ही टिकी है। ठहरने के लिए होटलें, प्रसाद की दुकानें, मेवे की बड़ी -बड़ी दुकानें, रेस्टोटोरेंट,भोजनालय, सवारियों के लिए साधन, तीर्थयात्रियों के लिए माता रानी के दर्शन के लिए हेलीकाप्टर जैसी सुविधाओं में काफी इजाफा हुआ है। बाजार में खरीददारों की भीड़ रोजाना इतनी होती है कि आप इस ऑफ सीजन को ऑफ सीजन नहीं कह सकते। अभी यहां के लिए ऑफ सीजन है। मार्च से ही यहां के लोग सीजन मानते है। ऐसा कश्मीर रोड के चाय दुकानदार रमेश ने बताया।
हर कोई यहां आनंद का अनुभव करता है
कटरा के मेवे व्यापारी पवन सिंह कहते है कि करोड़ों का कारोबार तीर्थयात्रियों के भरोसे है। इसलिए यहां के दुकानदार और धर्म स्थानों की तरह तीर्थयात्रियों से झपट कर नहीं बोलता। न कोई झंझट करता। सबके मुंह से जय माता दी ही निकलती है। तभी दूसरा शब्द। चौड़ी सड़कें वह भी साफ सुथरी स्वच्छता की प्रतीक है। सड़क पर कोई न भिखारी दिखा न कोई लावारिश जानवर। रेलवे स्टेशन लाखों मुसाफिरों के आवागमन के बावजूद एकदम साफ सुथरा है। थके मंदे यात्रियों के लिए रेलवे ने प्लेटफार्म पर जाने आने के लिए रैम बनवा दिया है। कोई दिक्कत कहीं नहीं। चाहे कोई दिव्यांग हो या थका हुआ। कटरा स्टेशन देखकर यात्री का मन खुश हो जाता है।
यात्रियों की सुविधा का रखा जाता है पूरा ध्यान
माता वैष्णव देवी के दर्शन करने के लिए टोकन की जरूरत होती है। इसके लिए जगह जगह काउंटर बने है। बस स्टैंड वाले काउंटर यात्रियों के लिए पापुलर है। इस वजह से वहां ज्यादा भीड़ होती है। यात्रियों की सुविधा के लिए बाड़े बने है। भीड़ देख नए तीर्थयात्री को लगता है कि कितना समय लगेगा? मगर इतने काउंटर बने है कि मुश्किल से पांच से दस मिनट में आपका नंबर आ जाता है।
कैमरे से फोटो लेकर आपके शहर का पिन कोड नम्बर पूछ, नाम दर्ज कर तुरंत टोकन वाला कार्ड बनकर तैयार हो जाता है। कार्ड को गले में लटकाने के लिए फीते से बंधे है। यह कार्ड बनने के बाद छह घंटे के अंदर वाणगंगा यानी मंदिर के नजदीक वाले स्थान पर पहुंचना होता है। और यात्रा पूरी होने पर वापसी में कार्ड को नीचे जमा करा देना होता है। इसके लिए सीआरपीएफ के जवान प्रतिनियुक्त है।
सीआरपीएफ की चौकसी और सुरक्षा इंतजाम तीर्थयात्रियों के ख़ौफ़ को खत्म करती है। वैसे तीर्थयात्रियों को पहाड़ों में बैठी मातारानी पर भरोसा है। देवघर (झारखंड) से आए मां वैष्णव देवी सेवा समिति के यात्रियों की टोली के सदस्य गोपाल शर्मा, संतोष देवी, दीनानाथ शर्मा, सीके पंडित, नीरज गुप्ता, निर्मल मिश्रा, बिहार के झाझा से आए मुन्ना यादव, गौरव यादव सरीखों ने जनसत्ता संवाददाता को बताया कि माताजी की कृपा से 25 सालों से आ रहे है। कभी कोई तकलीफ नहीं हुई। बल्कि यात्रियों के लिए सुविधाओं में समय के अनुसार इजाफा जरूर हुआ है।
यात्री ट्रेनों को समय से चलाने का दावा यहां बेमतलब है। 6 जनवरी को हावड़ा से खुली हिमगिरि एक्सप्रेस ट्रेन 8 जनवरी को 11 घंटे देर से जम्मू पहुंची। वैसे ही 12328 उपासना एक्सप्रेस (दून-हावड़ा एक्सप्रेस ) ट्रेन 11 जनवरी के बजाए 12 जनवरी को रवाना हुई। वह भी पुराने कोचों के साथ। इतने गंदे बाथरूम किसी भी हाल में रेलवे से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। इस पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा एसी बी फोर के यात्री विजय कुमार ने कहा।
कटरा से माता रानी के दर्शन के लिए सुरक्षा प्रक्रियाओं से गुजरते यात्रियों को घोड़ा, पालकी वाले डेग-डेग पर तंग करते है। इससे तीर्थ यात्री थोड़ा परेशान होते है। मगर इनकी भी मजबूरी है। इनकी रोजी रोटी का सवाल है। मगर वैष्णव देवी श्राइन बोर्ड ने इनकी रेट तय कर रखी है। कटरा से माता रानी के दरबार से एक किलोमीटर पहले तक आने जाने का 1200 रुपए प्रति घोड़े, पालकी के 3900 रुपए। एक तरफ से आधा। नकद का खेल नहीं। न ठगी का झमेला। जगह -जगह काउंटर बने है। वहां घोड़े – पालकी वाले के आईडी कार्ड लेकर यात्री खुद को ही पर्ची कटाकर तय रकम जमा करनी होती है। इससे कोई बतमीजी या बदसलूकी की गुंजाइश भी नहीं रहती है। यानी पूरा नियंत्रण । (आगे कल पढिए)