अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस में अब नया जेंडर वार शुरू हो गया है। इस बार मुद्दा टाॅयलेट को लेकर है। दरअसल, कहा ये जा रहा है कि विश्वविद्यालय के पुरुष कर्मचारियों ने महिला कर्मचारियाें के शौचालय पर कब्जा कर लिया है। अब वे कब्जा छोड़ना नहीं चाहते हैं। इस बाबत महिला शिक्षकों ने मार्च महीने में विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के समक्ष शिकायत की थी। इसके बाद जांच टीम का गठन किया गया, जिसने महिलाअों की शिकायत को जायज ठहराया। लेकिन इसके छह महीने बीतने के बाद भी थोड़ा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। वहीं, जेंडर वार शुरू हो गया है।
टाईम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, आईसीसी की पीठासीन अधिकारी शहीना तरन्नुम कहती हैं, “किसी भी आपात स्थिति में पुरुष कर्मचार पुरुष छात्रों के लिए बने टॉयलेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे। पुरुष शिक्षक महिला कर्मचारियों को स्पेस नहीं देना चाहते हैं।”आईसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कला भवन में महिलाओं के लिए केवल 14 रेस्टरूम हैं, जिनमें दर्शनशास्त्र, अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास, मनोविज्ञान, सामाजिक कार्य, फारसी, भाषाविज्ञान, राजनीति विज्ञान और संस्कृत के विभाग हैं। इसके विपरीत पुरुष शिक्षकों के लिए शौचालयों की संख्या 37 है।
रिपोर्ट के अनुसार, अभी कला विभाग में 116 पुरुषों के मुकाबले 59 महिला शिक्षक हैं। वर्ष 2011-12 में यूजीसी द्वारा दिए गए 25 लाख रुपये के फंड से महिलाओं के उपयोग के शौचालय बनवाए गए थे। इस पूरे मामले पर एक महिला प्रोफेसर कहती हैं, “कुछ पुरुष सदस्यों ने अवैध रूप से महिला रेस्टरूम के अंदर यूरेनल बनवा दिए हैं। टॉयलेट को लेकर लड़ाई महिलाओं के अधिकार का एक हिस्सा है।” इस साल जुलाई महीने में तरन्नुम द्वारा की गई सिफारिशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि महिलाअों के लिए टॉयलेट को चिन्हित करने लिए निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
दर्शनशास्त्र विभाग के प्रोफेसर तारिक इस्लाम इस पूरे विवाद पर कहते हैं, “लैंगिक समानता को लेकर एएमयू में अभी लंबा सफर तय करना है। कैंपस में इसेक लिए लिंग संवेदनशीलता को लेकर कार्यक्रम चलाने की जरूरत है।” वहीं, विश्वविद्यालय के प्रवक्ता सैफ ए किदवई कहते हैं, “हम पुरुष सदस्यों द्वारा कब्जा किए टॉयलेट को महिलाओं के लिए उपलब्ध करवाएंगे। साथ की कला संकाय में महिलाओं के लिए और अधिक टॉयलेट बनावए जाएंगे।”