लोग उनसे कहते थे कि ये वक्त भी बीत जाएगा लेकिन ऐसा कहने वालों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि पिछले आठ सालों से वो किस तरह जिंदगी बिता रही हैं। उनके पति राजन कांबले ताज महल पैलेस होटल में काम करते थे। 26 नवंबर 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले में उनके पेट में गोली लगी और उन्हें बचाया नहीं जा सका। श्रुति जानती हैं कि उनके जीवन की ये कमी कभी पूरी नहीं हो सकेगी। दक्षिण मुंबई के गोराई में रहने वाली श्रुति इस साल भी 26 नवंबर को सुबह चार बजे उठ गईं थीं। सुबह उठते ही वो रसोई में घुस गईं। उन्होंने अपने पति की पसंदीदा मसाला चाय और नाश्ता बनाया और उसे काजू कतली के कुछ टुकड़ों के साथ छत पर चिड़ियों के खाने के लिए रख दिया। साल 2009 से ही उनकी यही दिनचर्या है। श्रुति कहती हैं, “आठ साल बाद भी मेरा दर्द बिल्कुल ताजा है।” लेकिन पिछला शनिवार श्रुति के लिए नई राहत लेकर आया। इस बार वो ताज हमले में घायल ट्रैवल पत्रकार भीष्म मनसुखानी से मिलीं। मनसुखानी उस रात ताज होटल में रुके थे। श्रुति से मिलने पर मनसुखानी ने बताया, “वो बहुत बहादुर थे। उनकी बहादुरी की वजह से उस रात हमारी जान बची थी।” श्रुति और मनसुखानी शनिवार को इंडियन एक्सप्रेस की प्रदर्शनी ’26/11 स्टोरीज ऑफ स्ट्रेंथ’ के उद्घाटन के मौके पर मिले थे।
राजन कांबले को जब गोली लगी तो होटल में रुके मेहमानों ने उन्हें सोफे पर लिटा दिया था। भीष्म ने उस लम्हे को याद करते हुए बताया कि उनकी मां पास में बैठकर उनके लिए प्रार्थना कर रही थीं। एक डॉक्टर दंपति उनके पेट से बेतहाशा बह रहे खून को रोकने की कोशिश कर रहा था। श्रुति ने उनसे तीन बार पूछा, “उन्होंने कुछ कहा था?” कांबले का निधन तीन दिसंबर को हुआ था। 28 नवंबर से उनकी (राजन कांबले की) मौत तक श्रुति उनसे मिलने रोज अस्पताल जाती थीं लेकिन वो बोल नहीं पा रहे थे। श्रुति उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं सुन पाईं। मनसुखानी ने उन्हें बताया, “उन्होंने हमें ताज होटल के कर्मचारियों का नाम बताया जिनसे संपर्क किया जा सकता था ताकि हमें मदद मिल सके। उन्हें बहुत दर्द हो रहा था फिर भी वो एक बार भी नहीं चिल्लाए। थोड़े समय तक वो ईश्वर को याद करते रहे।” मनसुखानी की बातें सुनकर श्रुति की आंखों से आंसू बहने लगे। श्रुति कहती हैं, “बहुत से लोगों ने मुझसे कहा था कि उन्होंने बहुत बहादुरी दिखाई थी लेकिन मैं पहली बार ऐसे किसी व्यक्ति से मिल रही हूं जो उस समय उनके साथ था और अपनी आंखों से सब कुछ देखा था।”
26/11 हमले के कई पीड़ित परिवार इंडियन एक्सप्रेस की इस प्रदर्शनी के उद्घाटन के मौके पर आए थे। इन परिवारों की प्रतिक्रिया से साफ था कि उनके लिए ये दिन अपने निजी जीवन की त्रासदियों को याद करने का दिन होता है। 60 वर्षीय किया शेरर हिंदी नहीं समझती लेकिन श्रुति की तकलीफ को समझने के लिए भाषा की मोहताज नहीं हैं। किया ने आठ साल पहले मुंबई हमले में अपने पति एलन और बेटी नाओमी को खोया था। उन्हें अच्छी तरह पता है कि श्रुति पिछले कुछ सालों में किन-किन हालात से गुजरी हैं। किया कहती हैं, “इस कार्यक्रम के माध्यम से हम सब एक दूसरे से अपने अनुभव साझा कर सकेंगे।”
अंजलि कुल्थे कामा एंड एल्बलेस हॉस्पिटल में नर्स थीं। 2008 में आतंकवादियों ने इस अस्पताल पर भी हमला किया था। कार्यक्रम में वो राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस से मिलकर उन्हें बताया कि उन्होंने किस तरह अपने कर्तव्य की पुकार सुनी थी। अंजलि कहती हैं, “बहुत सारे अन्य लोगों ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया लेकिन उन्हें कोई पहचान नहीं मिली। मैं सीएम तक ये बात पहुंचा पाई, भले ही इसमें आठ साल लग गए।”
80 वर्षीय कुंदन सिंह कथायत नौसेना से रिटायर हैं। वो कहते हैं, “मैं आज भी अपने देश की सेवा करने के लिए तैयार हूं। मैं एक जवान था। अगर जरूरत पड़ी तो एक बार फिर मैं देश के लिए लड़ सकता हूं।” कुंदन सिंह का बेटा गोविंद आतंकी हमले के दौरान कोलाबा के एक रेस्तरा में तीन दिन तक छिपा रहा था। जब सुरक्षाबलों ने सभी आतंकियों पर मार गिराया या हिरासत में ले लिया तभी वो बाहर आ सका। इस हादसे ने उनके बेटे के जहन पर गहरा असर डाला और वो अवसाद का शिकार हो गया। सिंह ने कार्यक्रम में सीएम फड़नवीस से कहा, “वो जहां भी नौकरी के लिए जाता है उससे कहा जाता है कि उसमें आत्मविश्वास की कमी है। क्या आप एक निर्देश जारी कर सकते हैं जिससे कंपनियों उसे नौकरी देने पर विचार करें और उसे प्रोत्साहित करें?” सीएम फड़नवीस ने कुछ ही देर पहले इंडियन एक्सप्रेस-फेसबुक-इंस्टाग्राम पर गोविंद से जुड़ा वीडियो देखा था। कुंदन सिंह के जवाब देते हुए सीएम ने कहा, “कोई नहीं कह सकता कि आपके बेटे में आत्मविश्वास की कमी है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि कंपनियां उसकी मदद करेंगी।” सीएम के जवाब से कुंदर सिंह भावुक हो गए और उन्होंने कुर्सी से उठकर उन्हे सैल्यूट किया।
विका रोतवान की उम्र उस समय केवल 10 साल थी। मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मनिस पर हुए आतंकी हमले में उनके पैर में गोली लग गई थी। मुंबई पुलिस के हेड कांस्टेबल अरुण जाधव उनसे हर साल मिलते हैं। इस बार भी मिलते ही उन्होंने देविका से उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा। हमले की रात दो आतंकवादियों ने जिस पुलिस की क्वालिस जीप पर हमला किया था अरुण भी उसी में सवार थे। जीप में सवार और कोई पुलिसवाला बच नहीं सका था। देविका, अरुण और कुछ अन्य पीड़ित कुछ साल पहले मुंबई हमले से जुड़े एक कार्यक्रम में कुछ साल पहले मिले थे। उसके बाद से वो एक दूसरे से संपर्क में हैं। वहीं भीष्म ने श्रुति और उनके बेटे को अगले साल पंचगनी में होने वाले एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करते हैं। श्रुति ने उनका आमंत्रण स्वीकार भी कर लिया। वो कहत हैं, “इस बात को लेकर मुझे अपराध बोध महसूस हो रहा है कि मैंने उनसे पहले संपर्क क्यों नहीं किया।”
वीडियोः कार्यक्रम में एक पीड़ित ने साझा की अपनी कहानी-
वीडियोः देखें कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस
वीडियोः देखें कार्यक्रम में अनंत गोयनका का स्वागत भाषण