सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे जज लोया की मौत से जुड़े कई तथ्यों को इंडियन एक्सप्रेस ने सामने लाया है। इस रिपोर्ट में कारवां मैगजीन द्वारा उठाये गये कई सवालों की तफ्तीश की गई है। कारवां मैगजीन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जज लोया की बॉडी को उनके चचेरे भाई ने रिसीव किया। लेकिन जज लोया के पिता का बयान है कि उनका कोई भाई नागपुर में नहीं है। मैगजीन में जज लोया के पिता कहते हैं, ‘मेरा नागपुर में कोई भाई या चचेरा भाई नहीं है…अस्पताल की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किसने किया इस सवाल का जवाब अबतक नहीं मिला है।’ इंडियन एक्सप्रेस ने उस शख्स को ढूंढ़ निकाला जिसने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किया था। यह कोई प्रशांत राठी नाम के शख्स थे जिन्होंने अस्पताल से बॉडी की डिलीवरी ली थी। उस सुबह को याद करते हुए राठी बताते हैं, ‘ उस दिन मुझे मेरे मौसा रुकमेश पन्नालाल जकोलिया ने मुझे फोन किया। प्रशांत राठी बताते हैं, ‘उन्होंने कहा कि उनके चचेरे भाई (जज लोया) मेडिट्रिना अस्पताल में भर्ती हैं और मैं जाकर वहां मदद करूं, जब मैं अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टरों ने मुझे बताया कि वह नहीं रहे, इस खबर को मैने अपने मौसा तक पहुंचा दिया, उन्होंने मुझे अस्पताल की औपचारिकताएं पूरी करने को कहा।’ प्रशांत राठी बताते हैं कि उस वक्त वहां 7 से 8 जज मौजूद थे जिनमें जस्टिस भूषण गवई भी शामिल थे। इसके बाद पंचनामा के लिए पुलिस को बुलाया गया और पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया शुरू की गई।

नागपुर सरकारी अस्पताल से जस्टिस लोया के रिश्तेदार डॉ प्रशांत राठी के नाम जारी की गई रसीद (EXPRESS PHOTO)

जज लोया की बॉडी का पोस्टमॉर्टम नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सुबह 10.55 से 11.55 के बीच किया गया। पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट में बॉडी में ना ही जहर होने के सबूत मिले और ना ही किसी गड़बड़ी की बात सामने आई। पोस्टमॉर्टम के पहले राजेश धांडे और रमेश्वर वानखेड़े की मौजूदगी में लाश का पंचनामा किया गया। प्रशांत राठी ने बताया कि जब तक पोस्टमॉर्टम हुआ वह वहां पर मौजूद थे और उन्होंने जरूरी कागजातों पर हस्ताक्षर भी किये। इसके बाद एक एंबुलेंस में दो अधिकारी और एक पुलिस कॉन्सटेबल के साथ बॉडी को लातूर भेज दिया गया।

जस्टिस लोया के दो साथी जजों ने उनकी मौत से जुड़े मीडिया में चल रहे कई थ्योरी को खारिज कर दिया है। पूरी खबर पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें।

कारवां की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लोया की बॉडी पर खून के निशान थे। इस बारे में एक वरिष्ठ फॉरेंसिक एक्सपर्ट बताते हैं, ‘पोस्टमॉर्टम के दौरान खून निकलना लाजिमी है क्योंकि डॉक्टर बॉडी को खोलते हैं फिर सिलते हैं, कई-कई बार यदि छोटे-छोटे गैप रह जाते हैं तो खून निकल सकता है।’ कारवां की रिपोर्ट में जज लोया की बहन अनुराधा बियानी के हवाले से कहा गया है कि उनके पार्थिव शरीर को एक एंबुलेंस में सिर्फ एक ड्राइवर के साथ भेज दिया गया। लेकिन जस्टिस गवई इस मुद्दे पर दूसरी बात कहते हैं। जस्टिस गवई बताते हैं, ‘ मैंने उस वक्त के प्रिंसिपल जिला जज केके सोनवाले को खुद कहा कि जस्टिस लोया की बॉडी के साथ दो जज भेजे जाएं, ये दो जज थे योगेश रहानगदले और स्वयं चोपड़ा।’ जस्टिस गवई के मुताबिक एक एयर कंडीशन वाला एंबुलेंस बुलाया गया, साथ में बर्फ की सिल्लियां भी लाई गईं ताकि एंबुलेंस की एसी खराब होने के हालत में इनका इस्तेमाल किया जा सके। जिस कार में जज जा रहे थे वो कार जज योगेश रहानगदले की थी। हाईकोर्ट में काम करने वाले एक ड्राइवर उन्हें लेकर गया, उनके साथ एक कॉन्सटेबल भी था।

जस्टिस गवई बताते हैं कि नांदेड से कुछ ही दूर आगे निकलने के बाद कार में खराबी आ गई। जस्टिस गवई के मुताबिक जब एंबुलेंस लातूर पहुंची तो वहां साथी जज उन्हें रिसीव करने के लिए मौजूद थे। साथ में चल रहे दो जज और कॉन्सटेबल प्रशांत तुलसीराम ठाकरे लेट पहुंचे। रिपोर्ट्स के मुताबिक कार में खराबी एक दूसरी गाड़ी में टकराने के बाद आई थी, इसके बाद कार को 15 मिनट के लिए रुकना पड़ा था। यहां से कार गेट गांव के लिए रवाना हुई। सूत्रों के मुताबिक गेट गांव पहुंचने के बाद दोनों जज जस्टिस लोया के पिता से मिले और उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए।