स्कूल चलें हम, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, पढ़ें और पढ़ाएं, जैसे अलग-अलग नाम से सालों से शिक्षा को बढ़ावा देने को लेकर अलग—अलग अभियान चलाए जाते रहे हैं। यही नहीं बच्चों को शिक्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन, साइकिल आदि कई सुविधाएं भी मुहैया की जा रही हैं। मगर मध्यप्रदेश के गुना शहर में एक अलग ही दृश्य देखने को मिला। गुना शहर के महावीरपुरा इलाके में रहने वाले बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। महावीरपुरा में रहने वाले बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए रेल की पटरियां पार करनी पड़ती है। इन बच्चों के लिए स्कूल पहुंचना तब और भी मुश्किल हो जाता है जब पटरियों पर कोई ट्रेन या मालगाड़ी खड़ी होती है।
उस वक्त इन बच्चों को खड़ी हुई ट्रेन के बीच से या नीचे से गुजरकर जाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि बच्चों के पास स्कूल तक पहुंचने का वैकल्पिक रास्ता नहीं है। रास्ता तो है पर वह तीन कि.मी. लम्बा है। इतना लम्बा रास्ता तय करने की बजाय बच्चे पटरियां पार कर चंद मिनिटों में स्कूल पहुंचने का जोखिम उठाते हैं। बताया जा रहा है कि काफी समय से महावीरपुरा क्षेत्र के स्कूली बच्चे भार्गव कालोनी स्थित निजी स्कूल पहुंचते हैं। जबकि भार्गव कालोनी के भी कुछ बच्चे इसी तरह रेलवे ट्रैक पार कर दूसरी तरफ स्थित निजी और सरकारी स्कूलों में पहुंचते हैं।
लंबी दूरी का सफर तय करने की स्थिति से बचने के लिए जब ये बच्चे ट्रेन की पटरियां पार करते हैं उस दौरान कई बार बच्चों के परिजन भी उनके साथ मौजूद होते हैं और उन्हें अपनी मौजूदगी में पटरी पार कराते हैं, लेकिन स्कूल से लौटते समय बच्चे अकेले ही रेलवे ट्रैक पार करते हैं। परिजनों का कहना है कि छोटी दूरी के लिए उन्हें हर महीने ऑटो वाले को 600 रूपए किराया देना पड़ता है, इसलिए वे इसी मार्ग से अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं।
महावीरपुरा और भार्गव कालोनी जैसे इलाकों में रह रहे बच्चों को आज भी स्कूल जाने के लिए कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। गौरतलब है कि इस ट्रैक पर कई बार लोग पटरियां पार करते समय ट्रेन की चपेट में आ चुके हैं। इसके बाद भी नौनिहालों की जान को जोखिम में डालने का ये सिलसिला बदस्तूर जारी है।

