कभी आईआईटी दिल्ली का छात्र रहा और फिर वहीं प्रोफेसर के तौर पर काम कर चुका एक शख्स चाहता तो एशो-आराम और लग्जरी लाइफ जी सकता था, मगर उसने आदिवासियों के लिए संघर्ष करना ज्यादा बेहतर समझा। मूलत: नई दिल्ली के निवासी आलोक सागर ने आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया, फिर 1973 में यहीं से मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए टेक्सास की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी चले गए। भारत लौटने से पहले उन्होंने दो साल तक यूएस में जॉब भी की, फिर 1980-81 में वापस भारत आकर दिल्ली आईआईटी में एक साल पढ़ाया भी।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर के तौर पर काम कर चुके आलोक ने अनेकों छात्रों को पढ़ाया, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन भी उनमें से एक हैं। वहां से इस्तीफा देने के बाद आलोक ने मध्य प्रदेश के बेतूल और होसंगाबाद जिले में रहने वाले आदिवासियों के लिए काम करना शुरू किया। पिछले 26 सालों से आलोक आदिवासी बहुल गांव कोचामू में रह रहे हैं। करीब 750 की आबादी वाले इस गांव में बस एक प्राइमरी स्कूल है, इसके अलावा यहां ना तो बिजली है और ना ही सड़कें।
आलोक ने इस इलाके में 50 हजार से ज्यादा पौधे लगाए। उनका मानना है कि देश की सेवा करने के लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। आलोक ने कहा, “भारत में लोग कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं, मगर हर कोई डिग्री दिखाकर अपनी योग्यता साबित करने में लगा है, ना कि लोगों की सेवा करने में।” आदिवासी बच्चों को पढ़ाना और पौधों की देखरेख करना उनकी दिनचर्या में शामिल है। पैरों में रबड़ की चप्पलें, हाथ में झोला, उलझे हुए बाल, कोई कह ही नहीं सकता कि ये वही व्यक्ति है जिसे अंग्रेजी सहित कई विदेशी भाषाएं आतीं हैं।
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कभी देश के लिए आईआईटियन तैयार करने वाले आलोक के पास आज जमापूंजी के नाम पर 3 जोड़ी कुर्ते और एक साइकिल है। वो जिस घर में रह रहे हैं, उसमें दरवाजे तक नहीं हैं। वह हाल ही में तब चर्चाओं में आए थे, जब बेतूल में हुए उपचुनाव के दौरान पुलिस ने उन्हें वैरीफिकेशन के नाम पर थाने बुलवा लिया। मगर उनकी क्वालिफिकेशन देखकर सभी हैरान रह गए।
