मध्य प्रदेश में कुछ महीने पहले थैलेसीमिया से पीड़ित 5 बच्चों में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई थी। पहला मामला 15 साल की लड़की का था, जिसका इलाज के दौरान 126 बार ब्लड चढ़ाने के बाद 20 मार्च को HIV टेस्ट पॉजिटिव आया। दूसरा मामला 26 मार्च को सामने आया, जब 24 बार खून चढ़ाने के बाद एक नौ साल के लड़के का टेस्ट पॉजिटिव आया।

दो दिन बाद, 28 मार्च को एक नौ वर्षीय लड़के में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई । मेडिकल रिकॉर्ड से पता चलता है कि उसे 26 बार खून चढ़ाया गया था। चौथा मामला 3 अप्रैल को सामने आया, जिसमें एक 15 वर्षीय लड़के को 13 बार खून चढ़ाया गया था। पांचवीं और सबसे कम उम्र की मरीज, एक तीन वर्षीय बच्ची, 1 अप्रैल को एचआईवी पॉजिटिव पाई गई। उसे नौ बार ब्लड चढ़ाया गया था। पांच में से चार मामलों में, दोनों माता-पिता की एचआईवी जांच नेगेटिव आई।

थैलेसीमिया से पीड़ित 5 बच्चों में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि

परिवार उस समय स्तब्ध रह गया जब उनकी 15 वर्षीय बेटी के रक्त परीक्षण में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई। मध्य प्रदेश के सतना जिले के सरकारी और निजी अस्पतालों में ब्लड ट्रांसफर कराने के बाद इस साल मार्च और अप्रैल के बीच एचआईवी पॉजिटिव पाए गए थैलेसीमिया से पीड़ित पांच बच्चों में से एक के पिता ने कहा, “दो-तीन महीने पहले डॉक्टरों ने हमें बताया कि उसे एचआईवी है। मुझे विश्वास नहीं हुआ इसलिए हमने दोबारा टेस्ट कराया। जब रिपोर्ट फिर से पॉजिटिव आई तो मैं हिल गया। मेरी पत्नी और मैं एचआईवी पॉजिटिव नहीं हैं; हमें नहीं पता कि यह कैसे हुआ”

इंडियन एक्सप्रेस ने इस घटना की जांच के लिए गठित समिति के सदस्यों और राज्य एवं जिला स्वास्थ्य विभागों, एड्स नियंत्रण समिति और रक्त आधान परिषद के अधिकारियों से बात की जिससे खामी का खुलासा किया।

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एचआईवी संक्रमणों की जानकारी अस्पताल प्रबंधन या राज्य अधिकारियों को लिखित रूप में नहीं दी गई

मार्च और अप्रैल में पुष्टि किए गए एचआईवी संक्रमणों की जानकारी अस्पताल प्रबंधन या राज्य अधिकारियों को लिखित रूप में नहीं दी गई थी। स्थानीय अधिकारियों ने मामलों पर नज़र रखी और ब्लड ट्रांसफर लिस्ट तैयार कीं लेकिन जानकारी जिला स्तरीय एड्स नियंत्रण समिति के अधिकारियों के पास ही रही। स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल को संक्रमण की पुष्टि होने के महीनों बाद इसके बारे में पता चला, जिससे जिलों में तत्काल निवारक कार्रवाई की संभावना समाप्त हो गई।

Madhya Pradesh: 200 डोनर्स में से केवल 10-12 का ही पता लगाया जा सका

ब्लड ट्रांसफर से जुड़े लगभग 200 डोनर्स में से केवल 10-12 का ही सफलतापूर्वक पता लगाया जा सका है। कई फ़ोन नंबर गलत थे या बंद थे और दाता दूसरे राज्य में चले गए या उन्होंने टेस्ट कराने से इनकार कर दिया। इस पूरे कार्य को दो लोग संभाल रहे हैं। सतना जिला अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार, सभी पांच मामलों में बच्चों को जिला अस्पताल में खून चढ़ाया गया जबकि तीन मामलों में उन्हें एक निजी अस्पताल में भी खून चढ़ाया गया।

पहले संक्रमण की पुष्टि होने के नौ महीने बाद, 16 दिसंबर को, सिविल सर्जन डॉ मनोज शुक्ला ने सतना में एड्स नियंत्रण नोडल अधिकारी डॉ पूजा गुप्ता को एक औपचारिक नोटिस जारी कर थैलेसीमिया रोगियों में एचआईवी संक्रमण की रिपोर्टिंग में कथित चूक के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा। शुक्ला ने लिखा, “एचआईवी संक्रमण की पुष्टि मार्च/अप्रैल 2025 में किए गए एचआईवी परीक्षण के दौरान हुई थी और अस्पताल प्रबंधन और वरिष्ठ अधिकारियों को समय-समय पर वास्तविक स्थिति और आपके द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में सूचित रखना आपकी जिम्मेदारी थी; हालांकि, आपने ऐसा नहीं किया।”

अस्पताल प्रबंधन को लिखित में सूचित नहीं किया गया

मनोज शुक्ला ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हालांकि आंतरिक प्रक्रियाएं शुरू कर दी गई थीं लेकिन अस्पताल प्रबंधन को औपचारिक रूप से लिखित में सूचित नहीं किया गया था।” उन्होंने कहा, “स्थानीय अधिकारियों ने मामलों की जांच की, प्रत्येक बच्चे का पता लगाया और ब्लड ट्रांसफर की सूचियां तैयार कीं। उन्होंने बताया कि दाताओं से संपर्क किया गया और उन्हें ढूंढने के प्रयास किए गए लेकिन हमें आधिकारिक तौर पर कुछ भी सूचित नहीं किया गया।”

डॉ पूजा गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस साल की शुरुआत में जब पहला मामला सामने आया था तब वरिष्ठ अधिकारियों को मौखिक रूप से सूचित किया गया था, हालांकि उस समय कोई लिखित सूचना नहीं भेजी गई थी। गुप्ता ने कहा, “मार्च में जब पहला मामला आया तो हमने सिविल सर्जन को मौखिक रूप से सूचित किया था। मामले की संवेदनशीलता और बच्चे की पहचान की सुरक्षा के लिए इसे लिखित रूप में दर्ज नहीं किया गया था।”

डॉक्टर ने बताया कि संक्रमण का पता चलने के तुरंत बाद दानदाताओं का सत्यापन शुरू हो गया था। उन्होंने कहा, “चार दिनों के भीतर दानदाताओं की जांच की गई और रक्त बैंक के विवरण का सत्यापन किया गया। जिन सभी दानदाताओं का पता लगाया जा सका, उनकी एचआईवी जांच नेगेटिव आई।”

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ब्लड बैंक के अधिकारियों ने क्या दिया बयान?

ब्लड बैंक के अधिकारियों ने एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया है कि सभी ब्लड ट्रांसफर अनिवार्य परीक्षण प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद ही किए गए और स्क्रीनिंग के लिए प्रोटोकॉल का पालन किया गया। अधिकारियों ने कहा कि सभी संभावित रक्तदाताओं से फोन पर संपर्क किया जा रहा है और चल रही सत्यापन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उन्हें आगे के परीक्षण के लिए बुलाया जा रहा है।

राज्य रक्त आधान परिषद की उप निदेशक और बच्चों में एचआईवी संक्रमण के कारणों की जांच के लिए गठित छह सदस्यीय समिति की सदस्य रूबी खान ने कहा कि स्थानीय स्तर पर अपनाई गई प्रक्रियाओं का उद्देश्य पीड़ितों की गोपनीयता बनाए रखना था। खान ने कहा, ” इसे एक नियमित प्रक्रिया के रूप में निपटाया गया। राज्य स्तर पर हमें इसकी जानकारी नहीं मिली अन्यथा, कार्रवाई पहले ही की जा चुकी होती।”

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि दूषित रक्त का उपयोग ब्लड ट्रांसफर के लिए कैसे किया गया। सीएचएमओ डॉ. शुक्ला ने कहा कि निर्धारित मानदंडों के अनुसार, जांच के बाद ही खून चढ़ाया जाता है। उन्होंने स्वीकार किया कि कभी-कभी तकनीकी खामियां हो सकती हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे मामले होते हैं जहां एचआईवी एंटीबॉडी विंडो पीरियड के दौरान नहीं पाई जाती हैं। कभी-कभी संक्रमण का पता परीक्षण में आने में हफ्तों या महीनों भी लग सकते हैं।”

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