पति-पत्नी के बीच लिए गए आपसी तलाक को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। मध्य प्रदेश स्थित जबलपुर हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि आपसी समझौते से अलग होने को कानून मान्यता नहीं देता है। तलाक के लिए आपको कानूनी प्रक्रिया से गुजरना ही होगा।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक जबलपुर हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के आपसी रजामंदी से अलग होने को तलाक मानने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही पति द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि विवाहित जोड़े का आपसी समझौता करके अलग हो जाना तलाक नहीं होता।
याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आपसी समझौता कानूनी रूप से मान्य नहीं है। आपसी समझौता तभी तक के लिए होता है जब तक कि दोनों पक्ष में से किसी को भी आपत्ति न हो। यानी दोनों पक्ष सहमत हो। पति द्वारा दायर याचिका पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों को रद्द करने के लिए की गई थी। याचिका में कहा गया था कि साल 2023 में ही दंपति ने आपसी रजामंदी के तहत दस्तखत करके रिश्ता खत्म कर लिया था। ऐसे में पत्नी द्वारा पति पर इसके बाद कोई आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
आप दोनों मुस्लिम पक्ष से नहीं
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पति और पत्नी दोनों ही मुस्लिम धर्म से नहीं आते हैं। ऐसे में आपके तलाक को आपसी सहमति से मंजूरी नहीं दी जा सकती है। चिंता का विषय यह है कि आप दोनों ने नोटरी पर ही आपसी समझौता कर लिया। जबकि नोटरी अलगाव के समझौते के आधार पर तलाक को मंजूरी नहीं दे सकता है।
तलाक हो जाए तो तलाक के पहले किए गए दुर्व्यवहार पर दर्ज होगा केस
पत्नी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा था कि दोनों की शादी 21 अप्रैल 2022 को हुई थी। जिसके कुछ ही दिनों बाद उसके पति और ससुराल वालों ने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही पत्नी ने अपने ससुराल वालों पर मारपीट का भी आरोप लगाया है। इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि आपसी रजामंदी से अलगाव को कानूनी मान्यता नहीं है। ऐसे में कोर्ट इस बात को स्पष्ट किया है कि अगर तलाक हो जाए तो तलाक से पहले किए गए दुर्व्यवहार को लेकर आईपीसी की धारा 498-ए के तहत मामला दर्ज कराया जा सकता है।