मध्‍य प्रदेश हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्‍य सरकार को दलित शब्‍द का इस्‍तेमाल नहीं करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इसके बजाय आधिकारिक व्‍यवहार में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का प्रयोग करने को कहा है। मध्‍य प्रदेश की ग्‍वालियर पीठ के अनुसार, देश के संविधान या किसी अन्‍य कानून में कहीं भी दलित शब्‍द का उल्‍लेख नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता मोहन लाल मोहर ने दिसंबर में हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें सरकारी व्‍यवहार में औपचारिक या अनौपचारिक तौर पर दलित शब्‍द के इस्‍तेमाल पर रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिका के अनुसार, ‘दलित शब्‍द अपमानजनक है। अगड़ी जातियों ने अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के लोगों का अपमान करने के लिए इस शब्‍द को प्रचलन में लाया था। यहां तक कि भारतीय संविधान के जनक बीआर अंबेडकर ने भी दलित शब्‍द को अनुचित माना था। इसके बावजूद सरकार, गैरसराकरी संगठन और मीडिया बिना किसी वजह के दलित शब्‍द का प्रयोग करते हैं। इससे अनुसूचित जाति के लोगों की भावनओं को ठेस पहुंचती है।’

हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्‍य के लिए सोमवार (22 जनवरी) को निर्देश जारी किया था। मोहन लाल के वकील जितेंद्र कुमार शर्मा ने मंगलवार (23 जनवरी) को हाई कोर्ट के फैसले के बारे में जानकारी दी। मालूम हो क‍ि अनुसूचित जाति की श्रेणी में कई जातियां आती हैं, जिन्‍हें सामूहिक तौर पर दलित कह कर संबोधित किया जाता है। इस शब्‍द का सबसे पहले इस्‍तेमाल ज्‍योतिबा फुले ने किया था। देश की 1.25 अरब की आबादी में तकरीबन 18 फीसद अनुसूचित जात‍ि के लोग हैं। समाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण उनके लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा उनके हितों की रक्षा करने के लिए समय-समय पर कई कानून भी बनाए गए हैं। इसके साथ ही इस श्रेणी के लोगों के लिए कई कल्‍याणकारी योजनाएं भी चलाई जा‍ती हैं, ताकि इनकी स्थिति में सुधार लाया जा सके। देश के कई राज्‍यों में दलित समुदाय के हितों की रक्षा के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं। बावजूद इसके कई हिस्‍सों से दलित उत्‍पीड़न की घटनाएं सामने आती रहती हैं।