कानपुर में एक मदरसे ने फतवा जारी कर कहा है कि मरने के बाद शरीर दान करना इस्लाम में नाजायज है। मदरसे के इस फतवे का देवबंदी उलेमाओं ने समर्थन किया है। इस फतवे के समर्थन में देवबंदी उलेमाओं का कहना है कि अल्लाह के मुताबिक, इज्जत के साथ मुसलमान के मृत शरीर को सुपुर्दे-ए-ख़ाक करना चाहिए। मौलाना हनीफ बरकती का कहना है कि जो अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने को तैयार नहीं उसे खुद को मुसलमान कहने का हक नहीं है। दरअसल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कानपुर में मेडिकल कॉलेज के छात्रों के शोध के लिए रामा डेंटल कॉलेज के महाप्रबंधक अरशद मंसूरी द्वारा अपना शरीर दान करने की घोषणा की गई। इसपर वहां के मदरसों ने आपत्ति जताते हुए इसे गैर इस्लामिक और नाजायज़ करार दिया है। मदरसों के इस पतवे पर असशद मंसूरी का कहना है कि, ‘मैं समाज की भलाई के लिए मरने के बाद अपना अंगदान करना चाहता हूं। मैं इस काम के लिए समाज के दूसरे लोगों से भी हिस्सा लेने की अपील करना चाहता हूं। लेकिन मुझे पता चला कि कुछ मौलानाओं ने इसके खिलाफ फतवा जारी कर दिया है।’

अरशद मंसूरी ने कहा कि, ‘मुझे ये भी पता चला है कि फतवा जारी करने वाले मौलानाओं ने मुझे समाज से बेदखल करने की बात भी कही है। मेरी नजर में ये सारे मौलाना फर्जी हैं। मानवता को बचाना ही सबसे बड़ा धर्म है। मुझे धमकियों भरे फोन आ रहे हैं। मैंने पुलिस में शिकायत की लेकिन वहां से भी कोई मदद नहीं मिली है।’

फतवा जारी करने वाले मौलाना हनीफ बरकती ने कहा कि हो सकता है अरशद मंसूरी का नाम मुसलमानों जैसा हो लेकिन ये इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। हनीफ बरकती ने साफ कहा है कि हमारे धर्म में अंगदान करना नाजायज़ है।