आज के वैज्ञानिक युग में भी सफेद दाग या इससे जुड़ी बीमारियों को सामाजिक कलंक की तरह देखा जाता है। इस मानसिकता को हटाना बेहद जरूरी है। इस चर्म रोग से देश की दो फीसद आबादी प्रभावित है। विश्व विटिलिगो दिवस पर चर्मरोग विशेषज्ञों (डर्मेटोलॉजिस्ट) ने यह जानकारी देते हुए इस बीमारी से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि सफेद दाग या विटिलिगो चमड़ी के रोग की एक किस्म है जिससे त्वचा पर सफेद दूधिया निशान पड़ जाते हैं। पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित देश की करीब दो फीसद आबादी इस रोग से पीड़ित है।
त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर भावुक मित्तल बताते हैं कि जब हमारे शरीर की रंग पैदा करने वाली कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं तो दूधिया या सफेद रंग के दाग बनने शुरू हो जाते हैं जो बाद में पूरे शरीर में फैल जाते हैं। चमड़ी के अन्य रोगों की तरह ही इसके साथ जुड़ा सबसे बड़ा मसला है मनोस्थिति का। भेदभाव, कुष्ठ रोग की भ्रांति, सामंजस्य की कमी और लोगों की असंवेदनशील बातें मरीज को सामाजिक तौर पर शर्मिंदगी का अहसास कराती हैं, जबकि यह न तो छूत का रोग है और न ही जानलेवा है।
इस बीमारी में न कोई दर्द होता है और न ही मानसिक या शारीरिक क्षमता पर कोई असर पड़ता है। नरेंद्र मोहन अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हर्षवर्धन बताते हैं कि यह रोग भारत की बड़ी आबादी को प्रभावित करता है। हालांकि यह पता नहीं चल पाया है कि त्वचा में रंग बनने की प्रक्रिया काम करना क्यों बंद कर देती है। लेकिन कुछ तथ्य हैं जो जिम्मेदार हो सकते हैं। इनमें जेनेटिक्स, रोग प्रतिरोधक क्षमता में गड़बड़ी और तनाव की वजह से प्रतिक्रिया आदि शामिल हैं। चमड़ी का जख्मी होना और गंभीर सनबर्न होने से भी निशान बन सकते हैं।