राजधानी लखनऊ में भिखारियों पर किए गए एक सर्वे ने कई दिलचस्प तथ्य उजागर किए हैं। इस अध्ययन के अनुसार, लखनऊवासी प्रतिदिन लगभग 63 लाख रुपये भीख देते हैं। सर्वे के दौरान पाया गया कि लखनऊ में लगभग 5,312 भिखारी हैं, जो भीख मांगकर अपने जीवन का गुजारा कर रहे हैं। यह सर्वे नगर निगम, समाज कल्याण विभाग और डूडा (डेवलपमेंट फॉर अर्बन एंड रूरल डवलपमेंट) द्वारा किया गया, जिसमें भिखारियों की आमदनी और उनकी सोशल बैकग्राउंड का अध्ययन किया गया। एक रोचक तथ्य यह है कि कुछ भिखारी प्रतिदिन 3,000 रुपये तक की कमाई कर रहे हैं। सर्वे में पता चला कि भिक्षावृत्ति से लोग अच्छी आमदनी कर रहे हैं। खासतौर पर महिलाएं इस क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में अधिक कमा रही हैं। भिक्षावृत्ति में महिलाओं की सक्रियता भी ज्यादा है।

अधिकतर भिखारी पड़ोस के शहर के रहने वाले हैं

अधिकतर भिखारी लखनऊ के आस-पास के जिलों हरदोई, बाराबंकी, सीतापुर और रायबरेली से आते हैं। उनकी लखनऊ आने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अपने शहर में उनको भिक्षा मांगने में झिझक होती है, लेकिन बाहर यह दिक्कत नहीं होती है।

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सर्वे में पता चला कि कई भिखारियों के एकाउंट में लाखों रुपए जमा हैं और वे इस पेशे को छोड़ना नहीं चाहते हैं। कई लोग इसको ग्रुप बनाकर संगठित रूप से करते हैं।

अफसरों का मानना है कि इस सर्वे के नतीजे लखनऊ की सामाजिक संरचना और आर्थिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में सहायक होंगे। ऐसे आंकड़े नीति निर्धारकों के लिए महत्वपूर्ण हैं, ताकि वे भिक्षावृत्ति को दूर करने के लिए सुधारात्मक उपाय कर सकें। इसके माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जरूरी कदम उठा सकते हैं।

सर्वे से मिले आंकड़े समाज की जटिलताओं को उजागर तो करते हैं। साथ ही इस समस्या का समाधान खोजने में मदद कर रहे हैं। इस सर्वे के बाद यह साफ हो गया है कि देश में बड़ी संख्या में लोग भीख मांगने के पेशे में लगे हैं। यह एक तरह से समानांतर अर्थव्यवस्था की तरह काम कर रहा है। यानी लोग अपना काम छोड़कर कुछ लोगों को इस काम में पैसे कमाने के लिए लगा रखे हैं। अभी यह सर्वे केवल लखनऊ में किया गया है। अगर अन्य शहरों में भी इस तरह के सर्वे कराए जाएं तो कई और बड़ी जानकारी मिल सकती है।