लखनऊ में जल निगम के इंजीनियरों के घरों पर छापे में बेशकीमती संपत्ति मिलने पर लोग हैरान हैं। गुरुवार को विजिलेंस अधिकारियों ने इंदिरानगर निवासी और असिस्टेंट इंजीनियर राघवेंद्र गुप्ता, इंदिरानगर निवासी और सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर सत्यवीर सिंह चौहान, जल निगम के मानव संसाधन विकास प्रकोष्ठ में तैनात रहे गोमती नगर निवासी सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर अजय रस्तोगी, एल्डिको निवासी असिस्टेंट इंजीनियर कमल कुमार खरबन्दा और विकास नगर निवासी असिस्टेंट इंजीनियर कृष्ण कुमार पटेल के ठिकानों पर छापेमारी की। इस छापेमारी के दौरान बड़ी मात्रा में संपत्ति बरामद की गई, लेकिन इसका कोई सही हिसाब नहीं है।

विजिलेंस अधिकारियों ने सभी सामानों को जब्त किया

छापे के दौरान अधिकारियों ने गहनों, महंगी गाड़ियों और अन्य कीमती सामानों को अपने कब्जे में ले लिया। दस्तावेजों से पता चला है कि इन इंजीनियरों के पास कई बैंक लॉकर भी हैं और उन्होंने गोल्ड बॉंड में लाखों रुपये का निवेश किया है। सभी छोटे-बड़े सामान की जानकारी जुटाई जा रही है ताकि यह समझा जा सके कि इतनी संपत्ति कैसे इकट्ठा की गई।

अधिकारियों के घरों में मिली संपत्ति की बात करें, तो वहां 8 लाख रुपये का सोफा सेट, करोड़ों के गहने और नौ एसी जैसी महंगी चीजें मिलीं। यह देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है, बल्कि जल निगम के पांच रिटायर इंजीनियर्स की संपत्ति है। विजिलेंस टीम अब इस संपत्ति का सही मूल्यांकन कर रही है।

जांच में यह भी पता चला है कि इन इंजीनियरों के पास दो करोड़ रुपये से अधिक के गहने हैं। इसके साथ ही, उन्होंने महंगी सजावटी वस्तुएं और आलीशान गाड़ियां भी रखी हैं।

इन सब चीजों का सोर्स नहीं बताने से साफ है कि ये उनकी अवैध कमाई हैं। प्रशासन इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया है। छापेमारी ने जल निगम के अधिकारियों की भ्रष्टाचार की परतों को खोल दिया है। जांच अब भी जारी है, और आने वाले दिनों में और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं। सरकार ने इन भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

हालांकि, एक दुखद पहलू यह है कि जल निगम के कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के लिए विभाग को पैसे की कमी का सामना करना पड़ा है। यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह सवाल उठता है कि जब उच्च अधिकारी इतनी संपत्ति बना सकते हैं, तो कर्मचारियों के वेतन की व्यवस्था क्यों नहीं हो रही? इंजीनियरों के पास मिले पैसे का कोई स्पष्ट हिसाब नहीं है। यह स्थिति कर्मचारियों और लोगों में नाराजगी का कारण बन रही है।