क्या देश में कोई ऐसी सीट हो सकती है जो नक्शे पर ही नहीं हो? इसका जवाब है हां। पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम में विधानसभा की एक सीट ऐसी भी है जिसकी न तो कोई भौगोलिक सीमा है और जो न ही किसी नक्शे पर है। संघ विधानसभा क्षेत्र देश में अकेली ऐसी सीट है जो बौद्ध भिक्षुओं के लिए आरक्षित है। राज्य के 51 मठों में पंजीकृत बौद्ध लामा ही इस चुनाव में उम्मीदवार बन सकते हैं और वे ही मतदान कर सकते हैं। इस क्षेत्र के वोटरों की तादाद 3,293 है। राज्य में लोकसभा व विधानसभा के चुनाव 11 अप्रैल को पहले चरण में होने हैं।
पश्चिम बंगाल, तिब्बत और भूटान से घिरे सामरिक महत्त्व वाले छोटे से पर्वतीय राज्य सिक्किम की भले मुख्य धारा की राजनीति में कोई अहम भूमिका नहीं रही हो, इस राज्य के लोगों ने अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद हमेशा क्षेत्रीय दलों पर ही भरोसा जताया है। अब भी मौजूदा मुख्यमंत्री और सिक्किम डेमोक्रिटेक फ्रंट (एसडीएफ) के अध्यक्ष पवन कुमार चामलिंग वर्ष 1994 से ही कुर्सी पर काबिज हैं। देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने का रेकॉर्ड भी चामलिंग के नाम ही है। यहां लोकसभा की महज एक सीट है।राज्य चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, 32वें संघ विधानसभा क्षेत्र की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है। राज्य के 51 बौद्ध मठों में पंजीकृत बौद्ध भिक्षु ही इस सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं और वे ही वोट दे सकते हैं। मुख्य चुनाव अधिकारी आर. तेलंग बताते हैं कि इस सीट के लिए 51 मतदान केंद्रों में मतदान का इंतजाम किया गया है। उन मतदान केंद्रों में तीन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें रखी जाएंगी। उनमें से एक-एक लोकसभा व विधानसभा चुनावों के लिए होंगी और तीसरी संघ की सीट पर मतदान के लिए।
पिछली बार विपक्षी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के उम्मीदवार के तौर पर संघ की सीट जीतने वाले सोनम लामा कहते हैं कि इस सीट का इतिहास सदियों पुराना है। भारत में विलय से पहले यहां राजशाही थी। उस दौर में आम लोगों और बौद्ध लामाओं में से ही मंत्री चुने जाते थे। इस बार सत्तारूढ़ सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे शेरिंग लामा कहते हैं कि मंत्रिमंडल में लामाओं के प्रतिनिधित्व की परंपरा वर्ष 1640 में चोग्याल राजाओं के शासनकाल से ही चली आ रही थी। सिक्किम में संघ के लिए इस सीट के आरक्षण का प्रावधान संविधान की धारा 371 एफ के तहत किया गया है। वर्ष 2014 में संघ सीट पर एसकेएम उम्मीदवार को 126 वोटों से जीत मिली थी। अबकी इस सीट के लिए तीन उम्मीदवार मैदान में हैं। वर्ष 1975 में भारत में विलय के बाद यहां पहली बार 1979 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। संविधान की धारा 371 (एफ) के तहत इस राज्य और यहां के लोगों को कई विशेषाधिकार हासिल हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस धारा की रक्षा के लिए राष्ट्रीय दलों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
भंडारी, चामलिंग और भूटिया: वर्ष 1979 के पहले विधानसभा चुनाव में नर बहादुर भंडारी के नेतृत्व वाली सिक्किम जनता परिषद (एसजेपी) को 31 में से 16 सीटें मिली थीं। तब सिक्किम कांग्रेस (रिवोल्यूशनरी) को 11 और सिक्किम प्रजातंत्र कांग्रेस को चार सीटें मिली थीं। बाद में एसजेपी का कांग्रेस में विलय जरूर हुआ लेकिन यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं निभ सकी। भंडारी ने उसके बाद सिक्किम संग्राम परिषद (एसएसपी) का गठन किया। वर्ष 1985 के विधानसभा चुनावों में एसएसपी को 32 में से 30 सीटें मिलीं। उसके बाद वर्ष 1989 में भंडारी ने सभी 32 सीटें जीत लीं और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। भंडारी के अपने नजदीकी सहयोगी पवन कुमार चामलिंग से मतभेद पैदा हो गए। भंडारी ने चामलिंग को जेल में भी रखा और उनको गांतोक की सड़कों पर सरेआम बांध कर घुमाया गया। बाद में चामलिंग ने सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) नामक नई पार्टी बनाई और वर्ष 1994 के चुनावों में 19 सीटें जीत कर मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2004 के चुनावों में तो एसडीएफ ने सभी 32 सीटें जीतीं। वर्ष 2009 में चामलिंग की पार्टी को 31 सीटें मिलीं थी। वर्ष 2014 के चुनावों में नए बने सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने दस सीटें जीत कर चामलिंग को झटका दिया था। चामलिंग की एसडीएफ और प्रेम सिंह तामांग की एसकेएम के बीच कड़ा मुकाबला है। पूर्व भारतीय फुटबालर बाइचुंग भूटिया भी अबकी हामरो सिक्किम पार्टी(एचएसपी) नामक नई पार्टी बना कर मैदान में हैं।

