भारत के सबसे साफ सुथरे शहर का खिताब अपने नाम करने वाले इंदौर को ‘वाटर प्लस शहर’ का भी तमगा मिल गया। किसी भी शहर के लिए यह उपलब्धि मायने रखती है क्योंकि यह सर्टिफिकेट पाने वाला इंदौर पहला शहर बन गया है। इस सर्टिफिकेट के साथ ही लगातार पांचवीं बार इंदौर के सबसे स्वच्छ शहर बनने का दावा भी और मजबूत हो गया है। चलिए जानने की कोशिश करते हैं कि इस सर्टिफिकेट के लिए क्या तैयारियां की गई थीं।

बेहद कठिन सर्वे के बाद मिलता है यह सर्टिफिकेट: यह सर्टिफिकेट पाना कोई आसान काम नहीं है। आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की एक टीम, CTPT (कम्युनिटी टॉयलेट पब्लिक टॉयलेट) के साथ 11 अलग अलग पैरामीटर पर सर्वे करती है। यह सर्वे तीन से चार दिन तक चलता है। इसके दौरान देखा जाता है कि कही शहर में कोई नाला ओवर फ्लो तो नहीं हो रहा है, नदी में किसी प्रकार का कचरा तो नहीं तैर रहा है। सीवरेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के पानी के 25 फीसदी पानी का इस्तेमाल सड़क धुलाई, खेती और गार्डेनिंग के लिए हो रहा है या नहीं। इसके अलावा ड्रेनेज लाइन चोक नहीं होनी चाहिए, शिकायतों का निवारण कितनी देर में हो रहा है, शहर के सभी मेनहोल के ढक्कन बंद हैं या नहीं।

पिछली बार इंदौर के कटे थे 200 नंबर: इंदौर ने इस सर्टिफिकेट को नाक का सवाल बना लिया था। पिछले बार इंदौर के 200 नंबर कट गए थे। इसलिए यह सर्टिफिकेट नहीं मिल पाया था। इस बार अधिकारियों ने इंटीग्रेडेट कंट्रोल रुम बना दिया था। शहर को 19 जोन में बांटकर थ्री लेयर सिस्टम तैयार किया गया था। हर लोकेशन की निगरानी अधिकारी कर रहे थे और समस्या होने पर हर स्तर के अधिकारी को काम और निरीक्षण की जिम्मेदारी दी गई थी।

निगम ने खर्च किए 300 करोड़ रुपये: निगम में शहर को इसके लिए खास तरह से तैयार किया था। 300 करोड़ रुपये खर्च करके दो नदियों और 27 नालों को सीवर मुक्त कर दिया गया। इसके अलावा परिवारों को जागरुक किया गया जिसके बाद उन्होंने 20 करोड़ खर्च कर नाले में गिरने वाले आउटफॉल को बंद किया औऱ ड्रेनेज सिस्टम का कनेक्शन लिया।

इस सर्टिफिकेट के साथ इंदौर सेवन स्टार शहर की रेस में मजबूत हो गया। इंदौर ने स्थानीय स्तर पर जो काम किए, उसके कारण उसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है।