Holi 2019: बात होली की हो और बिहार का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। यहां होली का त्योहार फाग उत्सव की तरह मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत वसंत पंचमी से हो जाती है। हालांकि, बिहार के कुछ इलाकों में इसे फगुवा भी कहा जाता है। इसके अलावा कुर्ता फाड़ होली भी बिहार की ही खासियत है।

यह है फगुआ का मतलब : जानकारों के मुताबिक, फगुआ का मतलब फागुन के त्योहार (होली) से है। इस दौरान लोग फाग के गीत गाते हैं और इनकी धुनों पर जमकर डांस भी करते हैं। इसकी शुरुआत वसंत पंचमी से ही हो जाती है और होली के दिन तक लगातार फाग गाए जाते हैं।

पहले धूल, फिर रंगों की होली : बिहार के भागलपुर, मुंगेर आदि इलाकों में फगुआ का काफी ज्यादा महत्व है। लोग इसे काफी उत्साह से मनाते हैं। यहां पूर्णिमा के दिन पहले धूल-मिट्टी से होली खेली जाती है, जिसके बाद लोग रंगों वाली होली खेलते हैं।

आशीर्वाद से होती है शुरुआत : बिहार में होली की शुरुआत के लिए सबसे पहले कुल देवी-देवताओं को रंग चढ़ाया जाता है। साथ ही, उन्हें पुए का भोग भी लगाया जाता है। देव पूजन के बाद परिवार के सभी छोटे सदस्य अपने से बड़ों के पैरों पर रंग लगाते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। वहीं, होली की रात संगीत कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें सभी लोग लोकगीतों पर जमकर झूमते हैं।

कुर्ता फाड़ होली : बिहार में कुर्ता फाड़ होली भी खेली जाती है, जो विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है। लोग बताते हैं कि इस दिन के लिए खास तैयारी की जाती है। बाजार में स्पेशल कुर्ते बिकते हैं, जिनकी काफी डिमांड रहती है। यहां होलिका दहन की राख एक-दूसरे को लगाई जाती है, जिसे काफी शुभ माना जाता है। होली वाले दिन पहले गुलाल से सूखी होली खेली जाती है। इसके बाद पुरुष कुर्ता फाड़ होली खेलते हैं।

बिहार से हुई थी होली की शुरुआत : मान्यता है कि होली के त्योहार को मनाने की शुरुआत पूर्णिया जिले से हुई थी, जो बिहार में ही आता है। कहा जाता है कि पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में आज भी वह स्‍थान है, जहां होलिका भक्‍त प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी थी। मान्‍यता है कि होलिका इसी स्‍थान पर अपने भाई हिरण्‍यकश्‍यप के कहने पर भक्‍त प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती चिता पर बैठ गई थी। दावा किया जाता है कि पूर्णिया में ही वह खंभा भी मौजूद है, जहां भगवान विष्‍णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए थे। इसके बाद उन्होंने हिरण्‍यकश्‍यप का वध किया था। जानकार बताते हैं कि सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्यप का किला था। यहीं पर भक्‍त प्रह्ललाद रहते थे। स्‍थानीय बुजुर्गों की मानें तो पूर्णिया में आज भी उस काल के टीले मौजूद हैं।