विष्णु वर्मा
पिछले ग्यारह सालों से केरल की एक महिला श्मशान में पूरे रीति-रिवाजों से हिंदुओं का दाह-संस्कार करवाती आ रही हैं। आप सोच रहे होंगे की हम एक श्मशान में दाह-संस्कार करवाने वाली महिला की बात क्यों कर रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि यह महिला ईसाई है लेकिन फिर भी वह सभी रीति-रिवोजों से दाह संस्कार की प्रक्रिया को पूरा करवाती हैं। इस महिला का नाम सेलिना है। कोच्चि के कक्कानड स्थित श्मशान घाट पर दाह संस्कार महिला इंचार्ज सेलिना लोगों के बीच एक बड़ी मिसाल पेश करती हैं।
52 वर्षीय सेलिना हिंदुओं के सभी रिवाजों को अच्छे से जानती हैं, जिसकी मदद से वह आसानी से दाह संस्कार करवा पाती हैं। इस मामले को लेकर सेलिना ने कहा “इसके लिए दिमाग को मजबूत होने की आवश्यकता है। एक महिला जिस प्रकार की भी नौकरी करना चाहे वह कर सकती है। मैंने सुबह के तीन बजे तक शवों का दाह संस्कार कराया है और मैं इससे कभी नहीं डरी।” तिरिक्कारा नगर पालिका के इस श्मसान में आकर इस तरह का काम करना सेलिना के लिए बहुत मुश्किल था।
इस पर सेलिना ने कहा “मैं जब दो साल की थी तब मैंने अपनी मां को खो दिया था। जब मैं 12 साल की हुई तो मेरे पिता और आंटी की आंखो की रोशनी चली गई। घर चलाने के कारण मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। 22 साल की उम्र में मेरी शादी दिहाड़ी पर काम करने वाले एक मजदूर से हुई। शादी के बाद मैंने सोचा था कि मेरी जिंदगी संवर जाएगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह शराब पीकर घर आता और मेरे साथ मारपीट करता था। मेरी दोनों बेटियां यह सब देखते हुए बड़ी हुई हैं। मेरा पति अक्सर घर छोड़कर भाग जाता था और बहुत से कर्ज के साथ वापस लौटता। पिछली बार 19 साल पहले वह घर छोड़कर गया था और तबसे वापस नहीं आया है।”
सेलिना ने कहा “घर चलाने के लिए मैंने दिहाड़ी पर काम करना शुरु किया लेकिन इससे घर नहीं चल पा रहा था, इसलिए मैंने दाह-संस्कार करने वाले व्यक्ति के मददगार के रूप में काम करना शुरु किया। इसके बाद मुझे काम आ गया और फिर में भी इस कार्य को करने लगी। एक शव का दाह-संस्कार करने का मुझे 1,500 रुपए मिलता है जिसमें से 405 रुपए नगरपालिका को देना होता है। इससे मुझे बहुत ही कम लाभ मिलता है क्योंकि नारियल के गोलों और लकड़ी के लिए मुझे इसी रकम में से पैसा खर्च करना पड़ता है। नवंबर-दिसंबर में बहुत ही कम शव जलने के लिए आते हैं।” जैसे-तैसे अपने परिवार का पालन कर रही सेलिना ने आखिरी में कहा “मुझे नहीं पता भगवान ने मदद क्यों नहीं की।”

