अबकी देवताओं के घर देवघर में लगने वाला सावन मेले को कोरोना निगल लेने पर उतारू है। इसलिए प्रशासन तैयारियों के बजाए चुप्पी साधे है। पांच जुलाई से सावन शुरू है। भागलपुर और देवघर प्रशासन सरकार के आदेश की प्रतीक्षा में है। यह बिहार और झारखंड का राजकीय मेला है। जो सैकड़ों सालों से यहां लगता है। भागलपुर के सुलतानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से 50 लाख श्रद्धालु हरेक साल कांवड़ में जल भर पैदल 105 किलोमीटर कष्टप्रद यात्रा कर द्वादश ज्योर्तिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते है। लगता है इस साल यह सिलसिला थमेगा।

8 जून से बिहार समेत देश के कई राज्यों में मंदिर-मस्जिद धार्मिक स्थल के दरवाजे भक्तों के लिए खुल गए है। मगर झारखंड के धार्मिक स्थल बंद है। इसी में देवघर का बाबा बैद्यनाथ मंदिर भी है। इस वजह से इस सावन में यहां कांवड़ियों के लिए जलाभिषेक के साथ पूजा-अर्चना करने का रास्ता साफ नजर नहीं आता। लगता है कोरोना महामारी ने बाबा के पट को भक्तों के लिए बंद रखने को मजबूर कर दिया है। भागलपुर के सुलतानगंज का गंगा नदी घाट सूना पड़ा है। पांच जुलाई को गुरुपूर्णिमा है। और इसी दिन से सावन का शोर बोलबम के जैकारे के साथ शुरू हो जाता है।

हालांकि मंदिर खोलने और न खोलने की कश्मकश झारखंड सरकार, श्राइन बोर्ड, जिला प्रशासन और पंडा धर्मरक्षणी सभा के बीच चल रही है। कोरोना की वजह से राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड में किसी भी धार्मिक स्थल को खोलने व श्रद्धालुओं के पूजा और दर्शन के लिए 30 जून तक की रोक लगाई हुई है। इसके अलावे सैलून, कपड़े की दुकानें, होटल-रेस्तरां, सौंदर्य प्रसाधन, पान-पुड़िया, गुटका-सिगरेट सभी दुकानें 30 जून तक बंद रखने का सरकारी आदेश है।

देवघर की उपायुक्त नैनसी सहाय कहती हैं कि मेला आयोजित करने के लिए सरकार के आदेश का इंतजार है। वैसे अबतक मेले की औपचारिक तैयारियों की पहल नहीं की गई है। यही हाल भागलपुर प्रशासन का है। बिहार सरकार ने भी तैयारियों के बाबत कोई संदेश प्रशासन को नहीं भेजा है।

जाहिर है जब मंदिर के पट ही नहीं खुलेंगे तो कांवड़ियों का जल लेकर वहां जाना ही बेमतलब है? गोड्डा संसदीय क्षेत्र के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे भी चाहते है कि सावन का मेला लगे और श्रद्धालु पूजा अर्चना करें। वे खुद भी पूजा करने की इच्छा अपनी फेसबुक पोस्ट में जताई है। इनका मानना है कि मेला पर हजारों गरीब मध्यमवर्ग परिवारों की रोजी-रोटी टिकी है।

इधर बाबा मंदिर पंडा धर्मरक्षणी सभा के महामंत्री कार्तिक ठाकुर कहते है कि सुलतानगंज-देवघर- वासुकीनाथ -तारापीठ तक ढाई सौ किलोमीटर मेले का विस्तार हो चुका है। पचास लाख श्रद्धालु सिर्फ एक महीने सावन में पूजा अर्चना करने आते है। मेले के स्वरूप के मद्देनजर किसी भी हालत में सुरक्षित दूरी का पालन होना मुश्किल है। ऐसे में संक्रमण विकराल रूप धारण कर सकता है। हालत बिगड़े तो संभलना मुश्किल होगा।

वे कहते है कि मेला न लगने से गंभीर आर्थिक क्षति होगी। मगर जन हानि के सामने आर्थिक नुकसान कोई मायने नहीं रखता। इस आशय का पत्र उन्होंने बिहार और झारखंड के मुख्यमंत्रियों के नाम गुरुवार को लिखा है। साथ ही जनहित में मेला आयोजित न करने की गुजारिश की है। ऐसा उन्होंने बताया।

वहीं श्राइन बोर्ड के सदस्य प्रो.डा. सुरेश भारद्वाज इस संवाददाता को बताते है कि मेला आयोजित होना न होना श्राइन बोर्ड ही तय करती है। जिसके झारखंड मुख्यमंत्री पदेन अध्यक्ष है। बाबा वासुकीनाथ श्राइन बोर्ड के भी ये सदस्य है। इनके मुताबिक बोर्ड की बैठक बुलाने के बाबत मुख्यमंत्री को पत्र लिखा गया है। उम्मीद है जल्द बैठक होगी। इनके मुताबिक देवघर समेत संथालपरगना के चार ज़िले, छोटानागपुर के गिरिडीह , बिहार के भागलपुर, बांका, मुंगेर, ज़िले के छोटे दुकानदारों की आजीविका जुड़ी है। पूजा सामग्री, गंजी-गमछा-पेंट, चूड़ी-बद्दी, कांवड़, डब्बा, पेडा, चप्पल, चाय-नाश्ता बगैरह बेचने वालों की कमाई पर बुरी तरह ग्रहण लग जाएगा। कुछ टोकन सिस्टम जैसी तकनीक का उपयोग कर मेला आयोजित होना चाहिए। रास्ता निकलना चाहिए।

राजद के प्रदेश महामंत्री संजय भारद्वाज कहते है मेला आयोजित करने के पहले सरकार को सब कुछ परखना चाहिए। शारीरिक दूरी का पालन हो तो सरकार विचार करें। मगर इतने बड़े मेले जहां लाखों भक्त आते है। वहां देह दूरी मुश्किल है। भाजपा जिला मंत्री सुनील मिश्रा कहते है मेला आयोजित न होने से गरीबों को रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएंगे।

कोरोना की वजह से पहले ही मध्यमवर्ग बर्बाद हो चुका है। बाबा मंदिर के सरदार पंडा श्रीश्रीगुलाब नंद ओझा बताते है कि घरबंदी के दौरान बाबा की केवल सरकारी पूजा के लिए ही पट सुबह साढ़े चार बजे खोले जाते है। सावन में सुलतानगंज से यदि बिहार सरकार एक दिन में बीस हजार श्रद्धालुओं को भेजे तो सुरक्षित दूरी का पालन करते हुए पूजा हो सकती है।

बहरहाल भागलपुर प्रशासन भी इस मुद्दे पर फिलहाल चुप है। और झारखंड सरकार के निर्णय की प्रतीक्षा में है। कारण कि जब मंदिर के पट ही नहीं खुलेंगे तो भक्त जलाभिषेक कहां करेंगे। यह अहम सवाल खड़ा हो गया है। और सैकड़ों सालों से चल रहा जलाभिषेक का सिलसिला कोरोना के कहर की वजह से इस दफा थमेगा? ऐसा लगता है।