जम्मू-कश्मीर में दशकों से वापसी की राह देख रहे विस्थापित कश्मीरी पंडितों में से एक रोशन लाल मावा ने पुराने श्रीनगर में एक मिठाई की दुकान खोली है। 29 साल के लंबे अरसे के बाद मावा श्रीनगर में अपने पुराने व्यवसाय को शुरू कर फिर से अपनी जड़ों की ओर लौट रहें हैं। मावा के मुताबिक उन्हें यहां स्थानीय दुकानदारों का व्यापक समर्थन मिल रहा है। मावा को उम्मीद है कि उनके इस कदम से दूसरे कश्मीरी पंडित भी घाटी में लौटने को प्रेरित होंगे। एक दुकानदार लतीफ ने कहा कि कश्मीरी पंडित हमारे भाई हैं और उनसे हमारा कोई मतभेद नहीं हैं।
National Hindi News, 2 May 2019 LIVE Updates: दिन भर की बड़ी खबरों के लिए क्लिक करें
दरअसल, 90 के दशक के कई कश्मीरी पंडितों को उपद्रव की वजह से कश्मीर से पलायन करना पड़ा था। उनमें एक शख्स 74 वर्षीय रोशन लाल मावा भी हैं। उन्होंने हाल ही में पुराने श्रीनगर के जैन कदल इलाके में अपनी मिठाई की दुकान खोली तो स्थानीय लोगों और दुकानदारों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया। मावा ने कहा, “मैं उम्मीद नहीं कर रहा था कि मुझे यहां के स्थानीय लोगों से इतना बेहतरीन स्वागत मिलेगा। यहां लौटना मेरी आखिरी इच्छा थी। मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि मेरी आखिरी इच्छा अब पूरी हो गई है।” स्थानीय बाजार समिति के सदस्यों ने मावा की दुकान का दौरा कर पारंपरिक पगड़ी के साथ उन्हें और उनके बेटे को सम्मानित किया। रोशन लाल मावा की दुकान के बगल में एक किराने की दुकान चलाने वाले मोहम्मद लतीफ कहते हैं कि यह एक अच्छी बात है और हर कोई यहां खुश है। कश्मीरी पंडित हमारे भाई हैं और हमारे और उनके बीच कोई मतभेद नहीं है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब रोशन लाल मावा घाटी लौटे हैं। 1990 में घाटी छोड़ने के बाद से हर साल यहां कुछ दिनों के लिए ठहरने आते रहते हैं। उनके बेटे संदीप एक डॉक्टर और स्थानीय नेता हैं, जो कि श्रीनगर के करन नगर इलाके में रहते हैं। मावा ने बताया कि अक्टूबर 1990 में एक व्यक्ति मेरी दुकान पर आया और मुझ पर गोली चला दी। मुझे चार गोलियां लगीं, तीन गोलियां मेरे पेट में और एक मेरे कंधे में। इसलिए हम लोगों ने घाटी छोड़ने का फैसला किया। मावा के मुताबिक उनका परिवार पहले जम्मू और फिर बाद में दिल्ली में शिफ्ट हो गया। दिल्ली में व्यवसाय भी अच्छा चल रहा था, लेकिन मेरा मन घाटी में बसने का था, इसलिए मैं वापस आ गया।
बकौल रोशन लाल मावा उनके जैसे और भी लोग हैं जो घाटी दोबारा लौटना चाहते हैं। आगे उन्होंने कहा कि यहां कोई डर नहीं है। मैंने एक संवेदनशील इलाके में दुकान खोली है। मुझे स्थानीय लोगों से काफी मदद मिल रही है और ये कश्मीरी पंडितों को वापस लौटने में मदद करेगा।

