कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सोमवार को मस्जिदों में दिन में पांच बार अज़ान के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग करने से रोकने से इंकार कर दिया। इस दौरान उच्च न्यायलय ने कहा कि सहिष्णुता और भारत की सभ्यता भारत के संविधान की विशेषता है। बैंगलोर के एक निवासी ने एक जनहित याचिका दायर कर दावा किया था कि लाउडस्पीकर से अज़ान के कारण अन्य धर्मों के विश्वासियों की भावनाएं आहत होती है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कहा, “निस्संदेह याचिकाकर्ता के साथ ही अन्य धर्मों के विश्वासियों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। हालांकि यह तर्क कि अज़ान के दौरान इस्तेमाल किये जा रहे लाउडस्पीकर से अन्य धर्मों के लोगों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है, जो याचिकाकर्ता को गारंटी दी गई है, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है।” पीठ ने अधिकारियों को ध्वनि प्रदूषण के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “कर्नाटक पुलिस अधिनियम, 1963 की धारा 37 के साथ पठित ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के नियम 5 (3) के तहत लाउडस्पीकर और ध्वनि-उत्पादक उपकरणों के उपयोग के लिए लाइसेंस जारी किया जा सकता है। इस याचिका के उत्तरदाताओं को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि लाउडस्पीकर और सार्वजनिक-संबोधन प्रणाली और ध्वनि-उत्पादक वाद्ययंत्र और अन्य संगीत वाद्ययंत्रों को अनुमेय डेसिबल से अधिक के उपयोग की अनुमति रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक नहीं दी जाए।”
अदालत ने पुराने आदेश को याद करते हुए, जो 17 जून को दिया गया था, जिसमे लाउडस्पीकर और पीए सिस्टम के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक अभियान चलाने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा कि प्रतिवादी उन निर्देशों का पालन करेंगे और आठ सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करेंगे।
याचिकाकर्ता चंद्रशेखर आर की ओर से पेश अधिवक्ता मंजूनाथ एस. हलवार ने कहा कि अज़ान मुसलमानों की एक ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ है। लेकिन अज़ान (अल्लाह के रूप में अनुवादित सबसे महान) में प्रयुक्त शब्द “अल्लाहु अकबर” दूसरों की धार्मिक मान्यताओं को प्रभावित करते हैं।