डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को पंचकुला की सीबीआई कोर्ट ने आज पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाने के साथ ही पचास हजार का जुर्माना भी लगाया है। बता दें कि 2002 में रामचंद्र की हत्या हुई थी जिसके बाद न्याय के लिए परिवार ने 16 साल तक संघर्ष किया। न्याय पाने की इस लंबी कहानी को बताते हुए रामचंद्र के बेटे ने कहा पिता की हत्या के बाद परिवार को घर से बाहर निकलने में भी डर लगता था। परिवार को आर्थिक तंगी भी झेलनी पड़ी, साथ ही केस वापस लेने के लिए दबाव भी बनाया गया था। गौरतलब है कि रामचंद्र ही वो पत्रकार थे, जिन्होंने राम रहीम की काली करतूतों का खुलासा किया था। मामले में कोर्ट राम रहीम समेत चार आरोपियों को पहले ही दोषी ठहरा चुका था, जिसके बाद आज सजा का ऐलान हुआ है।

रामचंद्र छत्रपति की हत्या के बाद हाल ही में उनके छोटे बेटे अरिदमन ने बीते दिनों को याद करते हुए बताया था कि पिता की मौत के बाद पूरा परिवार साल भर से ज्यादा समय तक सदमें में रहा। यही नहीं पिता की मौत से परिवार इतना सहम गया था कि रात को अंधेरे में घर से बाहर निकलते हुए भी उन्हें डर लगता था। मामले में कई बार परिवार को धमकी भी मिली कि उन्हें केस वापस ले लेना चाहिए। रामचंद्र की हत्या के बाद बड़ा बेटा अंशुल मर्डर केस, पुलिस और अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया।

इंडियन एक्सप्रेस अखबार से बात करते हुए रामचंद्र छत्रपति के बड़े बेटे अंशुल ने बताया कि उन पर पिता की हत्या का केस वापस लेने के लिए कई बार दबाव बनाया गया। अंशुल के मुताबिक, ‘हमें पैसों का कोई डायरेक्टर ऑफर नहीं दिया गया था। हालांकि, कई नेताओं द्वारा हम तक यह बात पहुंचाई गई कि पैसा सबसे बड़ा मरहम है। ये ऑफर ऐसे दिए गए कि हमें समझाया गया कि परिवार पहले बहुत कुछ झेल चुका है। अब परिवार को और कोई नुकसान का जोखिम नहीं उठाना चाहिए। मुझे एक बार किसी ने बताया कि मुझे पांच करोड़ रुपए का ऑफर दिया जा रहा है। लेकिन मैंने उसे कभी नहीं ढूंढ़ा कि यह ऑफर किसने दिया।’

बेटे ने बताया कि घटना के बाद घर में मां, दो बेटे और एक बेटी ऐसे रहते थे कि कैसे भी करके ये दिन गुजर जाए। डर का माहौल ऐसा था कि घर से बाहर निकलते ही लगता था जैसे कोई हम पर घात लगाए बैठा है। हम सभी रात को डर-डर कर सोते थे। रामचंद्र के छोटे बेटे ने बताया कि पिता का इलाज और बाद में कोर्ट-कचहरी के चक्कर में परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ गई। यहां तक बड़े भाई व बहन की शादी के अलावा खुद की भी शादी के लिए कर्जा लेना पड़ गया। उसने बताया कि उस समय की सरकार ने 5 लाख मुआवजे का ऐलान किया था लेकिन सिर्फ 50 हजार रुपए ही मिला था। इसलिए तब उस चेक को वापस लौटा दिया गया था।

घटना को लेकर अंशुल ने बताया कि उसके पिता की हत्या का केस एडवोकेट लेखराज ढोट ने आखिर तक फ्री में लड़ने का वादा किया था। उन्होंने बताया लोअर कोर्ट में लेखराज ढोट, हाईकोर्ट में आरएस चीमा ने और अब सीबीआई जांच में लगे स्टे को हटवाने में एडवोकेट राजेंद्र सच्चर ने फ्री में पैरवी की थी।