उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath in Uttarakhand) में कई घरों में दरारें आईं हैं और यह संकट गहराता जा रहा है, लेकिन ये संकट आज का नहीं है। आज से लगभग 50 साल पहले 18 सदस्यीय समिति ने चेतावनी दी थी कि जोशीमठ शहर ‘भौगोलिक रूप से अस्थिर’ है। साथ ही समिति ने कई प्रतिबंधों के साथ सुझाव भी दिया था। लेकिन तब से अब तक सरकारें सोई रहीं।
भूस्खलन और डूबने के कारणों की जांच के लिए बनी थी कमेटी
जोशीमठ शहर (Joshimath town) के भूस्खलन और डूबने के कारणों की जांच के लिए गढ़वाल मंडल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा (Mahesh Chandra Mishra) की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था। 7 मई 1976 की अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने भारी निर्माण कार्य, ढलानों पर कृषि, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था। साथ ही वर्षा जल के रिसाव को रोकने के लिए पक्की जल निकासी का निर्माण, सीवेज सिस्टम और नदी के किनारों पर सीमेंट ब्लॉक बनाने का सुझाव दिया था ताकि कटाव रोका जा सके।
मौजूदा संकट के बीच अब कांग्रेस और बीजेपी रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने में विफल रहने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा समीक्षा की गई रिपोर्ट में पाया गया, “यह क्षेत्र भूगर्भीय रूप से अस्थिर है, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन होता है, सड़कें टूटती हैं और स्थानीय भूमि भी धंसती है। निर्माण गतिविधि और जनसंख्या में वृद्धि के साथ जैविक गड़बड़ी भी हुई है।”
बार-बार होने वाले भूस्खलन पर रिपोर्ट में कहा गया है कि यह हिलवॉश, रिपोज का नेचुरल एंगल, खेती योग्य क्षेत्र का स्थान और हिमनदी सामग्री के साथ पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसावट और धाराओं द्वारा कटाव के कारण हो सकता है। यह बड़े फिशर प्लेन के बनने और इस प्लेन के साथ मूवमेंट के कारण भी हो सकता है। (यह भी पढ़ें: जोशीमठ में गिराए जा रहे होटल और घर)
टाउनशिप के लिए उपयुक्त नहीं है जोशीमठ
रिपोर्ट में बताया गया कि जोशीमठ रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है और एक टाउनशिप के लिए उपयुक्त नहीं है। इसमें कहा गया है कि ब्लास्टिंग और भारी ट्रैफिक से होने वाले कंपन से प्राकृतिक कारकों में भी असंतुलन पैदा होगा।
ढलानों पर खेती भूस्खलन को जन्म देगा
रिपोर्ट में कहा गया, “ढलानों पर खेती भूस्खलन को जन्म देगा। साथ ही अलकनंदा और धौलीगंगा नदी की धाराओं द्वारा कटाव भी भूस्खलन लाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। बारिश और बर्फ के पिघलने के कारण पहाड़ों की धुलाई और पानी का रिसाव होता है। पहाड़ों के धुलने के कारण चट्टानों में घुसने वाला पानी फिर अलग हो जाता है।”
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर ध्यान आकर्षित करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, “पेड़ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बारिश के लिए यांत्रिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, जल संरक्षण क्षमता में वृद्धि करते हैं और ढीले मलबे के ढेर को पकड़ते हैं। चराई की घटनाओं में वृद्धि कटाई के समान है। जोशीमठ क्षेत्र में प्राकृतिक वन (Natural forest) को कई एजेंसियों द्वारा निर्दयतापूर्वक नष्ट कर दिया गया है। चट्टानी ढलान खाली और पेड़ रहित है। वृक्षों के अभाव में मृदा अपरदन और भूस्खलन होता है। डिटैचिंग बोल्डर को पकड़ने के लिए कुछ भी नहीं है। भूस्खलन और फिसलन प्राकृतिक परिणाम हैं।”