अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय अध्यक्ष व अरुणाचल प्रदेश की महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष जारजुम ऐटे ने कहा कि जनसंघर्षों के प्रति सरकारों का उपेक्षापूर्ण रवैया बेहद चिंताजनक है। वे शनिवार को सहारनपुर के प्रसिद्ध शाकुंभरी देवी स्थित नागल माफी में संगठन के तीन रोजा राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन के मौके पर बोल रही थीं। यूनियन का यह पहला अधिवेशन है जिसमें देश भर से आए प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। जारजुम जेटे ने कहा कि 2006 में वनाधिकार कानून को बने 11 साल बीत गए हैं लेकिन घोर चिंता की बात है कि न तो केंद्र सरकार ने और न ही राज्य सरकारों ने इस कानून के क्रियान्वयन में कोई दिलचस्पी दिखाई।
सरकारों की यह लापरवाही समझ से परे है। उन्होंने कहा कि वनाधिकार कानून बनाते समय संसद में सरकारी पक्ष ने कहा था कि जंगलों और वनों में रहने वाले आदिवासियों के साथ ऐतिहासिक अन्याय हुआ है। जेटे ने कहा कि सरकार की यह अभिव्यक्ति पूरी तरह सही थी लेकिन कानून को लागू न करके उसने अपनी जनविरोधी मंशा भी स्पष्ट कर दी। उनका कहना था कि एक तरफ तो वनाधिकार कानून है और दूसरी ओर 1927 में अंग्रेजी राज का वन अधिनियम है। ये दोनों कैसे एक साथ बने रह सकते हैं, समझ से परे की बात है। यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष व सहारनपुर नगर के विधायक संजय गर्ग ने कहा कि पिछले एक दशक में देश और प्रदेशों में विभिन्न दलों की सरकारें आई और गई हैं लेकिन किसी ने भी वनाधिकार कानून को लागू करने में रुचि नहीं दिखाई।
उनका कहना था कि सभी दलों की मानसिकता एक जैसी है और उनमें राजनीतिक इच्छाशक्ति का घोर अभाव दिखाई देता है। संजय गर्ग ने कहा कि उनका संगठन देश के दूसरे सामाजिक संगठनों के साथ समन्वय करके देश में बड़ा आंदोलन खड़ा करने का काम करेगा। गर्ग ने कहा कि वनाधिकार कानून को लागू करने में राजनीतिक दलों को कोई फायदा नहीं दिखता है क्योंकि उससे लाभान्वित होने वाले लोगों की संख्या डेढ़-दो फीसद मात्र है। लेकिन आदिवासियों और जन जंगल जमीन के हितों को लेकर वर्षों से आंदोलनरत सामाजिक कार्यकर्ता व उनके संगठन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते।