कश्मीर में शांति बहाल के लिए गए शिष्टमंडल का नेतृत्व कर रहे केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार (5 सितंबर) को कहा कि वे हर उस पक्ष से बात करने के लिए तैयार हैं जो घाटी में शांति चाहता है। उन्होंने केंद्र की ओर से राज्य सरकार को सभी तरह की मदद देने की भी बात कही। कश्मीर की शांति में बाधा डाले जाने के पाकिस्तानी मंसूबे से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम पहले अपने देश के लोगों से बात कर रहे हैं। हुर्रियत सहित सभी अलगाववादियों से वार्ता पर उन्होंने साफतौर पर कहा कि बातचीत के लिए दरवाज़ा ही नहीं, बल्की रोशनदान भी खुला है। घाटी में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान 71 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हैं।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि जम्मू कश्मीर में हालत सुधरेंगे। सिंह ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के साथ हुर्रियत नेताओं का व्यवहार ना तो ‘कश्मीरियत’ भरा है और ना ही ‘इंसानियत’ जैसा है। गृहमंत्री ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल के कुछ सदस्य हुर्रियत नेताओं से मिलने गए थे, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। राजनाथ सिंह ने कहा, हमने ना तो स्वीकृति दी और ना ही अस्वीकृत किया।
सिंह ने कहा बातचीत के लिए आए प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के साथ दूरी बनाए रखना दर्शाता है कि हुर्रियत के सदस्य लोकतंत्र में यकीन नहीं रखते। राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल के सदस्य हुर्रियत सदस्यों से व्यक्तिगत आधार पर मिलने गए थे।
अलगाववादियों ने किया था मिलने से इंकार:
इससे पहले रविवार (4 सितंबर) को सर्वदलीय शिष्टमंडल ने रविवार को जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की थी। उम्मीद की जा रही है कि अशांत घाटी में शांति की बहाली के लिए राज्य के दो दिवसीय दौरे पर आया यह शिष्टमंडल विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाकात करेगा। लेकिन शांति बहाली की इस कोशिश को तगड़ा झटका देते हुए अलगाववादी नेताओं ने प्रतिनिधिमंडल से मिलने के मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के न्योते को खारिज कर दिया। अलगाववादियों ने इस तरह के उपाय को ‘छलावा’ करार दिया और जोर देकर कहा कि ‘मुख्य मुद्दे पर गौर करने के लिए यह पारदर्शी, एजंडा आधारित वार्ता का विकल्प नहीं हो सकता।’
महबूबा की ओर से पीडीपी प्रमुख के रूप में अलगाववादियों को आमंत्रित करने के एक दिन बाद अलगाववादी नेताओं (हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों के) सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और (जेकेएलएफ के) मोहम्मद यासीन मलिक ने यहां एक संयुक्त बयान जारी करके उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि संसदीय प्रतिनिधिमंडल और ‘ट्रैक टू’ के जरिए संकट प्रबंधन के ये कपटपूर्ण तरीके केवल लोगों की परेशानियों को बढ़ाएंगे और ये जम्मू कश्मीर में लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार के मुख्य मुद्दे पर गौर करने के लिए स्वाभाविक पारदर्शी एजंडा आधारित वार्ता की जगह नहीं ले सकते।
