जम्मू और कश्मीर में शांति ‘बहाल’ करने के लिए घाटी का दौरा करने वाले मौलवियों और इस्लामी विद्वानों का बायकॉट किया जा सकता है। कश्मीर की राजनैतिक पार्टियों और स्थानीय मौलवियों का कहना है कि वे कुछ नहीं कर सकते। जम्मू-कश्मीर में जारी हिंसा के बीच मंगलवार को एक प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिला था। स्थानीय मौलवियों के अनुसार प्रतिनिधिमंडल के दौरे से कश्मीर में विरोध नहीं रुकेगा। ग्रांड मुफ्ती मुफ्ती आजम बशीरउद्दीन अहमद ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ”वे कश्मीर समस्या के बारे में कुछ नहीं जानते। वे यहां आकर क्या करेंगे। कश्मीर को दिल्ली से किसी (मौलवी या विद्वान) की जरूरत नहीं है।” मुफ्ती ने कहा कि कश्मीर का मुद्दा ”कोई भूमि विवाद या धार्मिक मुद्दा नहीं है जिसमें हमें उनकी जरूरत पड़े। बेहतर होगा कि वे अपने मुद्दों की परवाह करें।”
कश्मीरी मौलवी मौलाना गुलाम रसूल हामी ने कहा कि उनके कार्यालय ने दिल्ली से आने वाले प्रतिनिधिमंडल से मिलने का न्योता ठुकरा दिया है। उन्होंने कहा, ”वे तभी आते हैं, जब ऐसा तनाव होता है। वे एक खास विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं और उन्हें राजनीतिक स्तर पर भेजा जा रहा है। मैंने यहां कई मौलवियों से बात की है। ज्यादातर ने उनका बायकॉट करने का फैसला किया है क्योंकि यहां किसी मौलवी की जरूरत ही नहीं है।” कश्मीर में राजनैतिक दलों की भी यही सोच है। नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा, ”यह कोई मज़हबी मसला नहीं है, बल्कि राजनैतिक है जिसे राजनीति से ही सुलझाया जा सकता है।”
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जम्मू-कश्मीर सरकार के प्रवक्ता और शिक्षा मंत्री नईम अनवार ने कहा कि उन्हें ऐसे किसी दौरे की जानकारी नहीं है। जब द इंडियन एक्सप्रेस ने राजनाथ से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्वकर्ता इमाम उमर इलयासी से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वे जल्द ही कश्मीर में होंगे। उन्होंने कहा, ”कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। हम कल राजनाथ जी से मिले थे और कहा कि हम कश्मीर में शांति चाहते हैं।” इलयासी ने कहा कि अभी उन्हें गृह मंत्रालय की तरफ से दौरे की इजाजत मिलनी बाकी है।