जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम  (PSA) के तहत एक कश्मीरी नागरिक की हिरासत को रद्द करते हुए सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि भारत पुलिस स्टेट नहीं है बल्कि लोकतांत्रिक देश है। अदालत ने इस बात ज़ोर दिया कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जो कानून के शासन द्वारा शासित है पुलिस और मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किए बिना उसे उठाकर पूछताछ नहीं कर सकते हैं।

इस मामले पर दक्षिण कश्मीर के शोपियां के जफर अहमद ने पिछले साल पीएसए के तहत दर्ज किए गए मामले को लेकर अदालत में अपनी हिरासत को चुनौती दी थी।

कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस राहुल भारती ने इस मामले पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि भारत पुलिसिया स्टेट नहीं है। यहां लोकतंत्र है और बिना किसी आरोप और मामला दर्ज किए किसी को पूछताछ के लिए नहीं उठाया जा सकता है। कोर्ट ने जफर अहमद की रिहाई का आदेश दिया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि इस तारा किसी को मनमाने ढंग से हिरासत में लेना नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है।

कोर्ट ने पूछा कि यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई मामला नहीं है तो उसे किस कानून के तहत उठाया गया और पूछताछ की गयी है।

कोर्ट ने कहा–“भारत में जो कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक देश है, पुलिस और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा यह कहना नहीं सुना जा सकता है कि किसी नागरिक को उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज किए बिना पूछताछ के लिए उठाया गया था, और कथित पूछताछ में याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला बनता दिख रहा है।

क्या है सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम  (PSA)?

बता दें कि पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत प्रशासन किसी व्यक्ति को बिना किसी ट्रायल के 3 से 6 माह तक हिरासत में रख सकता है। यह कानून साल 1978 में उमर अब्दुल्ला के दादा और तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने लागू किया था। यह कानून उस वक्त लकड़ी के तस्करों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लाया गया था।7