इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव- इन- रिलेशनशिप में रह रही विवाहित मुस्लिम महिला की दायर याचिका खारिज कर दिया है। महिला ने अपनी जान को खतरा बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मुस्लिम लॉ के मुताबिक मुस्लिम महिला किसी के साथ लिव- इन- रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है। लिव- इन- रिलेशन को इस्लाम में हराम बताया गया है।

न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की पीठ ने एक विवाहित मुस्लिम महिला और उसके हिंदू लिव- इन- पार्टनर द्वारा अपने पिता और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ अपनी जान को खतरा होने की आशंका से दायर सुरक्षा याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही। कोर्ट ने कहा कि महिला के आपराधिक कृत्य को न्यायालय द्वारा समर्थन और संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

मुस्लिम कानून शरीयत के प्रावधानों का उल्लंधन करते हुए याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ रह रही है। जिसमें कानूनी रूप से विवाहित पत्नी बाहर जाकर शादी नहीं कर सकती है। और मुस्लिम महिलाओं के इस कृत्य को जिना और हराम के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर हम याचिका नम्बर 1 के कृत्य की आपराधिकता पर जाएं तो उस पर आईपीसी की घारा 494 और 495 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। क्योंकि ऐसा रिश्ता लिव- इन रिलेशनशिप या विवाह की प्रकृति के रिश्ते के दायरे में नहीं आता है।

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की एक महिला लिव- इन- रिलेशनशिप में अपनी प्रेमी के साथ रह रही है। इस लिव- इन- रिलेशनशिप से परिवार में नाराजगी है। आज परिवार वाले की डर की वजह से महिला ने जान का खतरा बताते हुए हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने इस मामले में सभी तथ्यों को समझने के बाद याचिकाकर्ता को सिक्योरिटी देने से इनकार कर दिया है।