गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार (19 जून) को कहा कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले संबंधी गुम हुई फाइलों को खोजने के लिए गठित किए गए जांच पैनल का मकसद किसी को फंसाना नहीं बल्कि दस्तावेजों को खोजना था। राजनाथ ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब जांच कर रहे अधिकारी की ओर से एक गवाह को कथित रूप से प्रताड़ित किए जाने को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। उन्होंने राजग सरकार पर पूर्ववर्ती संप्रग सरकार में खामियां तलाशने के लिए पैनल का गठन करने के संबंध में लगाए जा रहे आरोपों के बीच यहां कहा, ‘जांच समिति का मकसद किसी को फंसाना नहीं बल्कि गुम हुई फाइलों का पता लगाना था।’
गृह मंत्री ने इन रिपोर्टों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि जांच अधिकारी अतिरिक्त सचिव बी के प्रसाद ने गुम हुई फाइलों के संबंध में एक अहम गवाह का बयान लेने से पहले उसे प्रताड़ित किया। यह पूछे जाने पर कि पैनल ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है, ऐसे में अब सरकार अगला कदम क्या उठाएगी, सिंह ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट अभी पूरी तरह नहीं पढ़ी है और वह सभी संबंधित लोगों से बात करने के बाद ही कोई राय बनाएंगे।
जांच पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इशरत जहां मामले के गुम हुए पांच दस्तावेजों में से केवल एक ही दस्तावेज मिला है। गुम हुए दस्तावेज उस समय के हैं जब पी चिदंबरम गृह मंत्री थे। पिछले सप्ताह अपनी रिपोर्ट जमा करने वाले जांच आयोग ने कहा है कि सितंबर 2009 में कागजात ‘जाने या अनजाने में हटाए गए या खो गए’। इस दौरान कांग्रेस नेता पी चिदंबरम गृहमंत्री थे। हालांकि जांच आयोग ने रिपोर्ट में चिदंबरम या तत्कालीन संप्रग सरकार के किसी अन्य व्यक्ति का कोई उल्लेख नहीं किया।
तत्कालीन गृह सचिव जी के पिल्लै समेत 11 सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों के बयानों पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दस्तावेज 18 से 28 सितंबर, 2009 के बीच लापता हुए। अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून, 2004 को गुजरात पुलिस के साथ हुई कथित फर्जी मुठभेड़ में इशरत, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर मारे गए थे। गुजरात पुलिस ने तब कहा था कि मुठभेड़ में मारे गए लोग लश्कर के आतंकवादी थे और उनकी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की योजना थी।