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मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि मूलत: गोवा के एक प्रवासी भारतीय डेसमंड कुटिन्हो और शर्मिला के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध रहा है। वह जब आत्महत्या के प्रयास के आरोपों का सामना कर रही थीं, उस वक्त जब भी उन्हें अदालतों में पेश किया, कुटिन्हो मौजूद रहे। एक बार अदालत में नाराज महिला कार्यकर्ताओं ने उस वक्त कुटिन्हो की पिटाई कर दी थी, जब उन्होंने अदालत के भीतर शर्मिला का हाथ पकड़ लिया था। उस वक्त एक महिला कार्यकर्ता ने कहा था, “मणिपुर में यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।”
उसके बाद कुटिन्हो ने इंफाल आना छोड़ दिया, लेकिन शर्मिला के समर्थकों को संभवत: अनशन छोड़ने का उनका फैसला नागवार गुजरा। इस तरह की खबरें भी हैं कि चुनावी राजनीति में शामिल होने की उनकी योजना बहुत से कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आई। शर्मिला के नाम पर बने एक समूह ‘शर्मिला कान्बा लप’ के सदस्यों ने ‘सिद्धांतों से पीछे हटने’ के लिए उनकी आलोचना की। यह समूह बाद में भंग कर दिया गया। ‘सेव शर्मिला ग्रुप’ का गठन करने वाली उनकी महिला समर्थकों ने भी उन्हें समर्थन देना बंद कर दिया। इससे पहले मानवाधिकार कार्यकर्ता उनके समर्थन में सांकेतिक अनशन करते रहे। जब कभी उन्हें अदालत में पेश किया गया, उनके समर्थकों ने यह जताने की कोशिश की कि वह इस लड़ाई में अकेली नहीं हैं।
लेकिन, अदालत द्वारा बरी किए जाने के बाद जब उन्हें रिहा किया गया तो लोगों ने उन्हें शहर में कहीं भी नहीं रहने दिया। इस वजह से उन्हें एक बार फिर जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के उसी उच्च सुरक्षा वाले विशेष वार्ड में शरण लेनी पड़ी, जो पिछले 16 वर्षो से उनका घर रहा था। बाद में उन्हें इंफाल के नजदीक एक आश्रम में रहने की अनुमति दी गई। थौबल विधानसभा क्षेत्र में महिलाएं शर्मिला को देखकर रोईं, जहां उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह को चुनौती दी थी।
वह अपनी चुनावी जीत को लेकर आश्वस्त लग रही थीं। इंफाल से करीब 35 किलोमीटर दूर इस विधानसभा क्षेत्र में लोगों से संपर्क साधने के लिए वह नंगे पांव घूमीं। विधानसभा चुनाव में शर्मिला को 100 से भी कम वोट मिले, जिसने साबित कर दिया कि इस राजनीति में उनके लिए कोई जगह नहीं है। घोर चुनावी पराजय ने शर्मिला को राजनीति से संन्यास घोषित करने के लिए बाध्य कर दिया। मणिपुर में बहुत से राजनेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें चुनावी जंग में नहीं कूदना चाहिए था। क्या उनका दृढ़ संकल्प उन्हें जीवन में एक अन्य चुनौतीपूर्ण समय की ओर ले जाएगा? समय ही बताएगा।

