देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने के लिए चलाए गए गदर और अन्य आंदोलनों के भूले बिसरे ‘शहीदों’ की तस्वीरों का अनोखा और एकमात्र संग्रहालय है जलंधर का देशभगत यादगार सभागार, जहां क्रांतिकारियों की तकरीबन 300 से अधिक तस्वीरें और पेंटिंग्स को प्रदर्शित किया गया है। जलंधर स्थित ‘देश भगत यादगार कमेटी’ की ओर से देश भगत यादगार सभागार में बनाए गए इस संग्रहालय में सिपाही विद्रोह के पहले से लेकर 1947 तक के विभिन्न आंदोलनों से जुड़े और अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों की तस्वीरें और पेंटिंग्स रखी हैं। कमेटी के ट्रस्टी तथा संग्रहालय के प्रभारी गुरमीत सिंह ने कहा, ‘युवाओं को इन शहीदों के बारे में बताने के लिए कमेटी ने इस संग्रहालय का निर्माण 1992 में करवाया था ताकि देश की आजादी से जुड़े भूले बिसरे शहीदों की तस्वीरों को रखा जाए। इसमें सिपाही विद्रोह और उससे पहले से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक के ऐसे ‘महानायकों’ की तस्वीरें शामिल हैं जो लोगों के मानस पटल से लुप्त हो गए हैं।’
सिंह ने बताया कि ये तस्वीरें उन रणबांकुरों की हैं जिन्होंने अंग्रेजी दासता से मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया था लेकिन अब इतिहास में धीरे-धीरे गुम हो रहे हैं। यह सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले खासतौर से गदर इंकलाबियों की यादे सहेज कर रखी गई हैं। सिंह ने बताया, ‘इसमें सिपाही विद्रोह, कूका आंदोलन, बंगाली, मराठी और कानपुर के क्रांतिकारियों की तस्वीरें हैं। इसमें शहीदे आजम भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह द्वारा चलाए गए आंदोलन ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के नायकों की भी तस्वीरें शामिल हैं।’ उन्होंने बताया, ‘इसके अलावा गदर पार्टी आंदोलन, बब्बर अकाली आंदोलन, कीर्ति पार्टी आंदोलन तथा भगत सिंह की अगुवाई वाली नौजवान भारत सभा से जुड़े आंदोलनों के नायकों की भी तस्वीरें ला कर रखी गई हैं।’
उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश के अजनाला में खुदाई के दौरान कुएं से बरामद किए गए आजादी के परवानों की अस्थियों का हिस्सा भी इस संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है। इन लोगों को अंग्रेजी हुकूमत ने एक कमरे में बंद कर दिया था। यह पूछे जाने पर कि इतनी पुरानी तस्वीरों को एकत्रित कहां से और कैसे किया गया है, कमेटी की महासचिव रघवीर कौर ने बताया कि इन तस्वीरों को एकत्रित करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, हमें जहां कहीं से भी ऐतिहासिक तथ्य की जानकारी मिलती है। हमारी कोशिश होती है कि पूरी जानकारी प्राप्त करना और तस्वीर हासिल करना। महासचिव कहती हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा लंदन, कनाडा और अमेरिका से इन तस्वीरों को लाया गया है। इन शहीदों के गांव के बड़े बुजुर्गों से उनका हुलिया जान कर कुछ का स्केच बनवाया गया है और यह काम लगातार जारी है।
इस बीच गुरमीत ने बताया, ‘कुछ तस्वीरें हमने उस समय के अखबारों से तथा उनके खिलाफ चलने वाले मुकदमों के दस्तावेज से ली हैं जो अब भी हमारे पास हैं। देश के लोगों से हमारी अपील है कि स्वतंत्रता आंदोलनों से जुड़े और ऐसे भूले बिसरे क्रांतिकारियों की उपलब्ध तस्वीरें तथा उनके सामान आदि अगर किसी के पास है तो वह हमें जरूर दें क्योंकि उनका सही स्थान यही संग्रहालय है।’
कौर एवं गुरमीत ने कहा, ‘इस संग्रहालय में तस्वीरों के नीचे उन महानायकों के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। इससे जहां लोगों को एक ओर इन भूले बिसरे शहीदों के बारे में जानकारी मिलेगी वहीं इससे दूसरी ओर शोध करने वाले छात्रों को भी मदद मिलेगी।’ उन्होंने बताया, ‘1992 में जब इस संग्रहालय का उद्घाटन हुआ था तब इसमें केवल 70 महानायकों की तस्वीरें थीं। पिछले तीन चार साल में हमने तकरीबन 200-250 तस्वीरों का प्रबंध किया है और अभी भी यह काम जारी है। एक अन्य सवाल के उत्तर में गुरमीत ने कहा कि इस संग्रहालय की स्थापना या शहीदों के इन कार्यक्रमों को चलाने के लिए हमें सरकार की ओर से मदद नहीं मिलती है।
* ‘देश भगत यादगार कमेटी’ ने सिपाही विद्रोह के पहले से लेकर 1947 तक के विभिन्न आंदोलनों से जुड़े और प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों की 300 से अधिक तस्वीरें व पेंटिंग्स हैं।
* इसमें सिपाही विद्रोह, कूका आंदोलन, बंगाली, मराठी और कानपुर के क्रांतिकारियों की तस्वीरें हैं। इसमें आंदोलन ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के नायकों की भी तस्वीरें शामिल हैं।’